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शिक्षण और अधिगम (Teaching and Learning)

By Roshan Ekka

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नमस्कार दोस्तों आज हमारी website www.allgovtjobsindia.in द्वार टीचर टेरिग के सम्बन्धित बहुत ही महत्वपूर्ण नोट्स ले कर आएं जो आपके सभी Teacher Training के Exam के लिए महत्वपूर्ण है। 

आज हम Teaching Notes शिक्षण और अधिगम (Teaching and Learning) पर लेख लेकर आए है। अंशा है ये लेख आपको जरूर पसन्द आएगा। चलिए शरू करते हेै।

शिक्षण और अधिगम (Teaching and Learning) : शिक्षण व अधिगम में गहरा सम्बन्ध है। ये दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। यदि शिक्षण अच्छा होगा तो अधिगम भी अच्छा होगा। परन्तु दोनों के संबंधों को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि शिक्षण क्या है और अधिगम क्या है। 

(क) शिक्षण – शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों को सिखाने के लिए कारण उत्पन्न काता है। शिक्षण से विद्यार्थियों की सभी शक्तियों का विकास होता है और उनकी छुपी हुई प्रतिभा उजागर होकर बाहर आती हेै। प्राचीनकाल में शिक्षा केवल पाठ पढ़ाने से ही सम्बन्धित थी। परन्तु आज अध्यापक दृश्य – श्रव्य साधनों का उपयोग करके विद्यार्थियों को शिक्षा देता है। आज शिक्षण से अध्यापक, विद्यार्थी और विषय सामग्री तोनों ही परस्पर जुड़े हुए हैं। अध्यापक विषय सामग्री के निश्चित उछेश्य को प्राप्त करने के लिए विधिपूर्वक,  मनोवैज्ञानिक रूप से विद्यार्थियों के समक्ष रखता है ताकि वे उसे ग्रहण कर सकें। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जो विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन लाती है, ताकि विद्यार्थी समाज के साथ रहने और अपने विकास करने के तरीकों को जान सकें। विद्वानों ने शिक्षण के बारे में अलग अलग परिभाषाएँ दी हैं –

  1. शिवकुमार मिश्र के अनुसार – “शैक्षिक तकनीकी की उन तकनीकों एवं विधियों को विज्ञान कहा जा सकता है, जिसके द्वारा शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।” 
  2. आर.ए. कॉक्स के अनुसार – ” मनुष्य की सीखने की दशाओं में वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रयोग शैक्षिक तकनीकी कहलाता है।”
  3. राष्ट्रीय शिक्षा तकनीकी परिषद् (NCRT) की शिक्षा सम्बन्धी परिभाषा इस प्रकार है, ” शिक्षा तकनीकी मानवीय अधिगम की प्रक्रिया में मानव – शिक्षण के ढाँचे, तकनीकों और सहायक सामग्री का विकास प्रयोग और मुल्यांकन करती है। ” 
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(ख) अधिगम – अधिगम का अर्थ है – सीखना। यह मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हर आदमी जन्म से लेकर मृत्यु तक अधिगम प्राप्त करता है। इसका मतलब यह है कि अधिगम का सम्बन्ध केवल शिक्षा से नहीं है, बल्कि मानव के सम्पूर्ण जीवन से है। इसका मतलब यह है कि अधिगम का सम्बन्ध केवल शिक्षा से नहीं है, बल्कि मानव के सम्पूर्ण जीवन से है। शिक्षण की प्रक्रिया में अधिगम का महत्वपूर्ण स्थान है। उदाहरण के रूप में हम यह कहते हैं कि शिक्षा का उछेश्य बच्चों के व्यवहार मे परिवर्तन लाना है। परन्तु जब उनके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है, तब हम यह समझ लेते है कि बच्चों ने कुछ सीख लिया है। विद्यार्थियों के समक्ष कुछ अनुभव और ज्ञान की बाते रखी जाती है। जिन्हें समझकर उन्हें व्यवहार में आवश्यकतानुसार परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। इन्ही को हम अधिगम कहते हैं। अधिगम द्वारा विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है तथा विकास करने में उनकी सहायता की जाती है। अधिगम के बारे में विद्वानों ने अलग – अलग परिभाषाएं दी हैं – 

  1. गेट्स के अनुसार – ” अधिगम अनुभव द्वारा की शोध है।” ( Learning is the modification of behaviour through experiences.” ) 
  2. क्रो और क्रो के अनुसार – ” अधिगम के अन्तर्गत आदतें, ज्ञान तथा व्यवहार को ग्रहण करना आ जता है।” ( Learning involves the acquisition of habits, knowledge and attitude”.) 

शिक्षण और अधिगम का सम्बन्ध 

शिक्षण और अधिगम का पारस्परिक गहरा सम्बन्ध है। शिक्षण के बिना अधिगम नहीं हो सकता और अधिगम के बिना शिक्षण का कोई महत्व नहीं। यदि शिक्षण को आधार बनाकर अधिगम किया जाता है तो वह निश्चय ही सफल होगा। अधिगम की सफलता भी शिक्षण पर निर्भर करती है। यही कारण है कि दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू माना गया है। परन्तु दोनों में कुध अन्तर भी है।” शिक्षण विद्यार्थियों को निर्देशन देता है और अधिगम विद्यार्थी के व्यक्तित्व का विकास करता है। पाश्चात्य विद्धान बर्टन ने उचित ही कहा है – ” शिषण अधिगम का उद्दीपन, निर्देशन एवं प्रोत्साहन है।” 

क) समानताएँ – शिषण और अधिगम में गहरा सम्बन्ध है और दोनों की कुछ समानताएँ इस प्रकार हैं – 

  1. शिक्षण के बिना अधिगम असम्भव – शिक्षण के बिना अधिगम सम्भव नहीं है। भाव यह है कि जब तक कोई शिक्षा देने वाला अथवा सिखाने वाला नहीं है, तब तक विद्यार्थी किससे क्या सीखेगा। उसका अधिगम अधूरा ही रहेगा। 
  2. शिक्षण का लक्ष्य – अधिगम – अधिगम के बिना शिक्षण का कोई महत्त्व नहीं है। कारण यह है कि अधिगम के लिए ही शिक्षण होता है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि शिक्षण का लक्ष्य ही अधिगम है। अतः यदि अधिगम नहीं तो शिक्षण भी नहीं। 
  3. शिक्षण एवं अधिगम कलाएँ – शिक्षण तथा अधिगम दोनों ही श्रेष्ठ कलाएँ हैं। पढ़ाना यदि कला है तो सीखाना भी एक कला है। अतः दोनों का गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक – दूसरे पर आश्रित हैं।
  4. शिक्षण एवं अधिगम समय से सम्बद्ध – शिक्षण तथा अधिगम दोनों का सम्बन्ध समय से है। इसका मतलब यह है कि जिस प्रकार का देश और काल होगा, उसी प्रकार का शिक्षण और अधिगम होगा। तानाशाह राजाओं के काल में अध्यापक बच्चों को तानाशाही ढंग से शिक्षा देता था। बच्चे स्वतंत्र नहीं होते थे, परन्तु लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में अध्यापक लोकतान्त्रिक ढंग से शिक्षा देता है। यही कारण है कि जो अध्यापक तानाशाही ढंग से पढ़ाते है, वे सफल अध्यापक नहीं कहे जा सकते। 
  5. लक्ष्य की समानता – शिक्षण और अधिगम में लक्ष्य की भी समानता है। शिक्षण का लक्ष्य अधिगम है और अधिगम शिक्षण के लक्ष्य की प्राप्ति है। 
  6. नियमों पर आधारित – शिक्षण और अधिगम में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही कुध नियमों पर आधारित हैं। यदि अध्यापक इन नियमों का समुचित ढंग से पालन करता है तो शिक्षण और अधिगम दोनों के लक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं। 
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ख) विषमताएँ – भले ही शिक्षण और अधिगम में गहरा सम्बन्ध हो और शिक्षण के बिना अधिगम अधूरा हो और अधिगम के बिना शिक्षण सम्भव ही न हो, फिर भी दोनों में कुछ विषमताएँ भी हैं। इन विषमताओं के कारण दोनों में काफी अन्तर देखा जा सकता है।

शिक्षण और अधिगम की विषमताएँ 

शिक्षण अधिगम


1. शिक्षण एक ऐसी क्रिया है जो बच्चों के व्यवहार को बदलती है। 
2.पूर्व निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शिक्षण दिया जाता है। 
3.शिक्षण कारण है। 
4.शिक्षण की अन्य क्रियाएँ हैं – जैसे भाषण, प्रश्नोत्तर की प्रक्रिया, प्रेरणा देना, निर्देशन देना आदि। 
5.शिक्षण का सम्बन्ध अध्यापक से है। 
6.शिक्षण अध्यापक की इच्छा से होता है।
7.शिक्षण एक सामजिक कार्य है। 
8.शिक्षण देने वाले अध्यापक को वेतन मिलता है। 
9.शिक्षण कार्य को सफलता अथवा असफलता का मूल्यांकन हो सकता है। 
10.अध्यापक शिक्षण से पूर्व विषय – वस्तु को पढ़कर कक्षा में आता है।
11.शिक्षण की प्रक्रिया अध्यापक और विद्यर्थियों दोनों के स्वभाव में परिवर्तन करती है। 
12.प्रत्येक शिक्षण का कोई – न – कोई निश्चित उद्देश्य अवश्य होता है। 
13.शिक्षण प्रायः औपचारिक होता है। 
1.अधिगम ऐसी प्रक्रिया है जो बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है। 
2.अधिगम से लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
3.अधिगम कार्य है, परिणाम है।
4.अधिगम में सुनना, सुनकर उत्तर देना, अध्यापक द्वारा निर्देशन एवं प्रोत्साहन देना आदि। 
5.अधिगम का संबंध विद्यार्थी से है। 
6.अधिगम बच्चों की इच्छा से होता है।
7.अधिगम व्यक्तिगत कार्य है।
8.लेकिन अधिगम के लिए बच्चों को फीस देनी पड़ती है।
9.अधिगम में बच्चे कुछ न कुछ अवश्य ग्रहण करते हैं। अतः 10.अधिगम बच्चों के लिए लाभकारी होता है।
11.बच्चे विषय – वस्तु को पढ़े बिना ही कक्षा में आते है।
12.अधिगम की प्रक्रिया केवल विद्यार्थियों के स्वभाव में परिवर्तन करती है। 
13.अधिगम प्रायः निरौपचारिक होता है।

निष्कर्षतः हम कह सकते है कि शिक्षण और अधिगम में समानताओं के साथ साथ विषमताएँ भी हैं। फिर भी ये दोनों परस्पर  संबंधित एवं आश्रित होते हैं। शिक्षण के बिना अधिगम असम्भव है और अधिगम के बिना शिक्षण निरर्थक है। परन्तु विद्यार्थी के लिए दोनों परम आवश्यक हैं। इनके द्वारा ही विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करता है, उसकी प्रतिभा तथा व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः दोनों एक – दूसरे से पूर्णतया सम्बन्धित हैं। 

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