शैक्षिक तकनीकी की अवधारणा Concept of Education Technology –

शैक्षिक तकनीकी की अवधारणा Concept of Education Technology – 

परिभाषा : शैक्षिक तकनीकी का अभिप्राय – वर्तमान युग में शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिदिन नये प्रयोग हो रहे हैं।अतः आज एक नई तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है, जिसे  ‘शैक्षिक तकनीक’ कहते हैं। ‘शैक्षिक तकनीक‘ अंग्रेजी के (Educational Technology) का हिन्दी रूपान्तर है। यह ‘शिक्षा’ तथा ‘तकनीक’ दो शब्दों से मिलने से बना है। पहले विद्यार्थियो को पढ़ाने के लिए श्यामपट्ट (Black Board) तथा चांक का प्रयोग होता था। परन्तु आधुनिक युग में श्यामपट्ट के साथ श्रव्य-दृश्य साधनों का भी प्रयोग होने लगा है। 

शैक्षिक तकनीक उन सभी प्रणालियों, विधियों एवं माध्यमों का विज्ञान है जिसके द्वारा शिक्षा के उछेश्य की प्राप्ति की जाती है।” यह तकनीक विद्याथियों को ज्ञान देने के साथ – साथ उनके व्यकितत्व का भी विकास करती है। इसकी सहायता से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सरल, स्पष्ट तथा प्रभावशाली बन जाती है। शैक्षिक तकनीकी के बारे में विद्वानों ने अलग – अलग परिभाषाएँ दी हैं – 

  1. किलअरी एवं उनके साथियों के अनुसार – ” शैक्षिक तकनीकी अनुदेशनात्मक सिद्धान्तों के प्रयोग में आने वाली समस्त विधि प्रणाली एवं तकनीकी समूह से सम्मिलित है।” 
  2. शिव के. मिश्रा के अनुसार – ” शैक्षिक तकनीकी का सम्बन्ध उन वैज्ञानिक तकनीकों और विधियों से है जिनके द्वारा शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।” (” Educational Technology can be conceived as a science of technique and methods by which education goals could be related.”)
  3. लेथ के अनुसार – ” शैक्षिण एवं अधिगम को सुधारने के लिए शिक्षण अधिगम एवं अधिगम स्थितियों के वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग शिक्षा तकनीकी है।” 

उपुर्यक्त परिभाषओं से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है ताकि शिक्षा के उद्देश्य को पूरा किया जा सके। शिक्षा के क्षेत्र में यह नवीनतम प्रयोग है। जिसमें विज्ञान की सहायता ली जाती है। इसका स़म्बन्ध शिक्षा के आदान (Input) तथा प्रदान (Output) तत्वों से है। यह केवल हार्डवेयर और साँफ्टवेयर उपागमों का प्रयोग नहीं करती, बल्कि यह शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, मंनोविज्ञान की भी सहायता लेती है। 

शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र – मूलतः शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र बहुत विशाल है, फिर भी निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत इसका विवेचन किया जा सकता है – 

  1. उद्देश्य निर्धारण में उपयोगी – आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करना बड़ा मुश्किल है, परन्तु शैक्षिक तकनीकी द्वारा यह काम बड़ा आसान हो गया है। यह तकनीक सर्वप्रथम विद्यार्थियों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं का पता लगाती है। तत्यश्चात् शिक्षा के उछेश्य का निर्धारण करती है।
  2. शिक्षण अधिगम की नीतियों का निर्धारण – शिक्षण और अधिगम का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। इन दोनों को सफल बनाने के लिए कुध नियम और नीतियां बनानी पड़ती है और यह कार्य शैक्षिक तकनीक द्वारा आसानी से किया जा सकता है। 
  3. श्रव्य – दृश्य सहायक सामग्री का प्रयोग – शिक्षण कार्य को सफल तथा प्रभावशाली बनाने के लिए अध्यापक श्रव्य – दृश्य सामग्री (Audio – Visual Aids) का प्रयोग करता है। लेकिन इस सामग्री का विकास और प्रयोग कैसे किया जाए यह एक समस्या है। इस काम में शैक्षिक तकनीक सहायता करती है। इसकी सहायता से यह पता लगाना सरल हो जाता है कि किस विषय के लिए कौन – सी सहायक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है और यह प्रयोग कैसे हो सकता है। यह स्पष्टीकरण होने पर अध्यापक विद्यार्थियों को विषय की ओर आकृष्ट करता है। 
  4. अध्यापक के लिए सहायक – शैक्षिक तकनीक अध्यापक की सहायता करती है, उसे परिक्षण प्रदान करने में उपयोगी है। शैक्षिक तकनीक के अनुसार अध्यापक प्रणाली – उपागम ( System approach), सूक्ष्म शिक्षण (micro – teaching) आदि की जानकारी प्राप्त करता है। यह तकनीक केवल अध्यापक के लिए ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है। यह विद्यार्थी और अध्यापक के पृष्ठ – पोषण और पुर्नबलन में सहायक है। 
  5. पाठ्यक्रम के निर्माण में सहायक – शैक्षिक तकनीक का एक अन्य लाभ यह है कि यह पाठ्यक्रम के निर्माण में सहायक है। इसे आधार बनाकर पाठ्यक्रम का विकास भी हो सकता है। पाठ्यक्रम अध्यापक के साथ – साथ विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक है क्योंकि यह दोनों को ज्ञान देता है। अतः शैक्षिक तकनीक की सहायता से समय – समय पर इसका विकास किया जा सकता है। 
  6. मूल्यांकन के लिए उपयोगी – मूल्यांकन के अधार पर यह पता लगाया जाता है कि शिक्षण किस सीमा तक सफल रहा है, परन्तु मूल्यांकन करना कोई आसान काम नहीं है। इसलिए शैक्षिक तकनीक की सहायता से मूल्यांकन कार्य को सफल ब्ताया जा सकता है। जिससे अध्यापक को उसके कार्य की सफलता का पता चलता है। 
  7. शिक्षण की उप – प्रणालियों का महत्व – शिक्षा के क्षेत्र में उप – प्रणालियों का विशेष महत्त्व है। इसमें आदान (Input) दोनों सिम्मलित हैं। इन दोनों का समुचित प्रयोग करके शैक्षिक तकनीक द्वारा शिक्षण को प्रभावशाली तथा सफल बनाया जा सकता है।
  8. शिक्षण अधिगम विश्लेषण में सहायक – शैक्षिक तंकनीक में शिक्षा का स्तर, संकल्प, अवस्थाएं, सिद्धान्त आदि का अध्ययन करने के साथ – साथ इन्हें सीखने के लिए भी प्रयास किया जाता है। यदि शिक्षण अधिगम का अध्ययन सरल व उपयोगी होगा तभी विधार्थी उनमें रूचि लेगा। इस कार्य के लिए शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग अत्यधिक सहायक सिद्ध हुआ है।
  9. अध्यापक शिक्षण के लिए उपयोगी – शैक्षिक तकनीकी अध्यापकों को समुचित प्रशिक्षण देने में अत्यधिक उपयोगी है। टोली शिक्षण, सूक्ष्म शिक्षण तथा श्रेणी शिक्षण आदि क्रियाओं द्वारा अयायकों के अनुसार संशोधन किया जाता है। इससे अध्यापक न केवल शिक्षण की विधि को सूक्ष्मता से सीखते हैं, बल्कि उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास होता है। शैक्षिक तकनीक द्वारा,अध्यापकों का सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। 
  10. हार्डवेयर – साँफ्टवेयर उपकरणों का प्रयोग – शैक्षिक तकनीक के अन्तर्गत शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने वाले विकसित किए गए यन्त्रों की जानकारी प्राप्त करते हैं। इसके लिए हम इन उपकरणों का उचित चुनाव करते हैं, संरक्षण करते हैं, शैक्षिक कार्य का निर्माण तथा विकास करते हैं और साथ ही उनका प्रयोग करने के लिए सही दिशा-निर्देश प्राप्त करते हैं। 
See also  शिक्षण सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन -Theories of Teaching

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। आधुनिक युग में विद्यार्थियों को उचित शिक्षण प्रदान करने में यह अत्यधिक उपयोगी है। 

उद्देश्य – शैक्षिक तकनीकी के कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य है। उद्देश्य को हम लक्ष्य भी कह सकते हैं। शैक्षिक तकनीक का मुख्य कार्य इन उद्देश्यों को पूरा करना है। इन उद्देश्य को हम दो भागों में बांट सकते हैं – 

(क) साधारण उद्देश्य ( General Objective) 

(ख) विशेष उद्देश्य ( Specific Objective)

(क) साधारण उद्देश्य (General Objective) 

  1. इसका प्रथम उद्देश्य है शैक्षिक का निर्धारण करना। 
  2. इसका दूसरा उद्देश्य है विभिन्न उपकरणों तथा साधनों को विकसित करना। 
  3. शिक्षण विधियों और साधनों का ज्ञान प्राप्त करना। 
  4. शिक्षा की प्रक्रिया में आवश्यक सुधार करना। 
  5. शिक्षा नीतियों का निर्धारण करना। 
  6. शिक्षा की समस्याओं का पता लगाना। 
  7. शिक्षा की समस्याओं का आवश्यक हल निकालना। 
  8. विद्यर्थियों के व्यक्तित्व का समुचित विकास करना।
  9. पाठ्यक्रम का निर्धारण करना तथा विकास करना।
  10. विधार्थियों की आकांक्षाओं का समुचित विकास करना। 

ख) विशेष उद्देश्य (Specific Objective)

  1. विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त योग्यता की जानकारी प्राप्त करना।
  2. विद्यार्थियों को व्यवहार सम्बन्धी लक्ष्य निर्धारण करना।
  3. सहायक सामग्री तथा संचार साधनों का आवश्यकता अनुसार प्रयोग करना।
  4. शिक्षण नीतियों का निर्धारण करना।
  5. शिक्षण नीतियों का उचित प्रयोग करना। 
  6. विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पहचानने में अध्यापक की सहायता करना। 
  7. विद्यार्थियों का मूल्यांकन करना।
  8. विद्यार्थियों और अध्यापकों के पृष्ठ – पोषण में सहायता करना। 
  9. शिक्षा पद्धति का प्रबंधन करना। 
  10. शिक्षा के परिणामों में आवश्यक सुधार करना। 

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शिक्षण तकनीकी का मुख्य उद्देश्य शिक्षण विधियों तथा तकनीकों को आधुनिकतम रूप प्रदान करना है। उन्हें विधिपूर्ण बनाकर मूल्यांकन की प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन करना है जिससे अध्यापक तथा विधार्थियों के व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाया जा सके। इस प्रकार शिक्षण प्रकिया को रोचक, प्रभावशाली तथा सरल बनाना शैक्षिक तकनीकी का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। 

शिक्षण तकनीकी के उपागम (चरण)

इससे पूर्व शिक्षण तकनीकी के अर्थ तथा स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। उसी के अधार पर हम उसके उपागमों का विभाजन कर सकते है। विद्वानों ने शैक्षिक तकनीकी के तीन उपागम बताए हैं – 

  1. मशीन प्रणाली एंव हार्डवेयर उपागम चरण (Hardware)- इसका सर्वप्रथम प्रयोग R.A Limsdive द्वारा 1964 में किया था। अन्य शब्दों में इसे श्रव्य – दृश्य सामग्री भी कहते हैं। शिक्षण विधि का प्रभावशाली बनाने के लिए जिन नवीन वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जा रहा है उनमें श्रव्य – दृश्य साधनों का अधिक महत्त्व है। इसकें अन्तर्गत रेडियो, टेयरिकॉर्डर, टेलीविजन तथा अन्य माध्यमों द्वारा प्रभावशाली ढंग से विद्यार्थियों को शिक्षण दिया जाता है। कुध विद्वान इसे शिक्षा का मशीनी चरण कहते हैं। इसका मुख्य सम्बन्ध ज्ञानत्मक पक्ष से है। इसके अन्तर्गात कम – से – कम समय में अधिक – से – अधिक छात्रों को विषय सम्बन्धी ज्ञान दिया जा सकता है। हार्डवेयर उपागमों में रेडियो, टेलीविजन, कम्यूटर, टेलीफोन, स्लाइड प्रोजेक्टर, फिल्म पट्टी, चलचित्र, मायाहीप, फिल्में, इन्टरनेट, प्रोजेक्टर तथा शिक्षण मशीन आदि सम्मिलित हैं। देश के पिछड़े क्षेत्रों के विधार्थियों का शिक्षा देने के लिए वन उपागमों का प्रयोग किया जा रहा है। 
  2. साँफ्टवेयर उपागम ( Software) – हार्डवेयर में श्रव्य दृश्य साधनों द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है। परन्तु साँफ्टवेयर में अध्यापक मनोवैज्ञानिक सिद्वान्तों का प्रयोग करता है। इसके द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों में आवश्यक परिवर्तन लाने की कोशिश करता है। यही नही, इसमें पुर्नबलन (Reinforcement) पर भी ध्यान दिया जाता है। इस उपागम की सहायता से अध्यापक विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन करने के लिए सिद्धान्तों का निर्धारण करता है तथा प्रयोग करता है। इसमें श्रव्य – दृश्य साधनों का प्रयोग नही किया जाता । साँफ्टवेयर का सम्बन्ध मनोविज्ञान से है। हार्डवेवयर  उपागम द्वारा जो शिक्षण युक्तियाँ अथवा शिक्षण सामग्री तैयार की जाती हैं, उसका प्रयोग साफ्टवेयर उपागम द्वारा किया जाता है। इस उपागम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह शिक्षण को प्रभावशाली सुबोध तथा रूचिपूर्ण, सरल बनाती है। यही कारण है कि हार्डवेयर और साँफ्टवेयर दोनों में गहरा सम्बन्ध है। यदि अध्यापक दोनों उपागमों का एक साथ उपयोग करे तो वह शिक्षण कार्य को सफल और रोचक बना सकते हैं। 
  3. प्रणाली उपागाम – यह उपागम गेरटालक के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त से अत्यधिक प्रभावित है। इसका सम्बन्ध कम्प्यूटर विज्ञान की अभियात्रिकी से है।  इसके द्वारा हम हार्डवेयर और साँफ्टवेयर अपागमों को इस प्रकार जेड़ते हैं ताकि शैक्षिक उछेश्य पूरे किए जा सके। इसे प्रबन्ध तकनीक को अत्यधिक प्रभावति किया है। इसेक आधार पर शैक्षिक व्यवस्था को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। ये हैं – 1. अदा (Input), 2. प्रक्रिया (Process), 3. प्रदा (Output), 4. पर्यावरण (Environment) । विद्यर्थियों के आरंभिक व्यवहार को इनपुट तथा परिवर्तित व्यवहार को आउट पुट के नाम दिए गए हैं। वस्तुतः इस उपागम का सम्बन्ध विधार्थी से है। इसके द्वारा यदि विद्यार्थी के व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन हो जाता है तो यह प्रणाली सफल कही जा सकती हैं। पश्चमी देशों में यह प्रणाली काफी सफल हो चुकी है, परन्तु हमारे देशा में इस प्रणाली का श्रीगणेश हुआ है। संभव है कि आने वाली समय में यह प्रणाली यहाँ भी सफल व लोकप्रिय होगी। 
See also  स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory

आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक तकनीकी एक महत्वपूर्ण तकनीकी है। इसे अपनाकर अध्यापक न केवल विद्यार्थी को ज्ञान प्रदान कराता है, बल्कि उसके व्यक्तित्व का विकास भी करता है। इस तकनीक से विद्यार्थियो की आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। 

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र विस्तृत होने के साथ विशद् भी है। यह तकनीक विशेष भूमिका निभा सकती है। 

महत्व – पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि अध्यापक तथा शिक्षक दोतों के लिए यह तकनीक अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इस सन्दर्भ  में निम्नलिखित विवेचन उल्लेखनीय है – 

  1. शैक्षिक वातावरण निर्माण में उपयोगी – शैक्षिक तकनीकी बच्चों की आयु, रुचियों तथा स्तर ने अनुसार शैक्षिक वातावरण निर्माण करने में सहायक पहुंचाती है। 
  2. पाठ्यक्रम निर्माण में उपयोगी – शैक्षिक तकनीकी द्वारा प्राइमरी स्तर के बच्चों की रूचियों तथा शारीरिक योग्यताओं का पता लगाया जा सकता है। तत्पश्चात् उचित विषय के पाठ्यक्रम का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है। 
  3. समय की बचत – अध्यापक प्राइमरी के बच्चों को श्रव्य – दृश्य साधनों का प्रयोग करके कम से कम समय में प्रभावशाली शिक्षण दे सकता है। ऐसा करने से समय की बचत होती है तथा कम समय में अधिक शिक्षण दिया जा सकता है। इसलिए शिक्षण तकनीकी समय का सदुपयोग करने में सहायता करती है। 
  4. सफल एवं प्रभावशाली  शिक्षण – प्राइमरी स्तर की कक्षाओं में शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से छोटे बच्चों की मानसिक रूचियों तथा उनकी आयु एवं स्तर का पता लगाया जाता है। तत्पश्चात् उपलब्ध सामग्री (दृश्य – क्षव्य) कॊ ध्यान में रखकर शिक्षा दी जाती है। इससे प्रभावशाली शिक्षण की भूमिका तैयार होती है और छोटे बच्चे आसनी से विषय को समझ जाते हैं। 
  5. शिक्षा के आधुनिकरण में सहायक – आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा का आधुनिकीकरण करना नितांत आवश्यक है। परन्तु यह कार्य सरल नहीं है। फिर भी इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए अध्यापक द्वारा शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि शैक्षिक तकनीकी की सहायता से किया गया शिक्षण काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। 
  6. उपयुक्त समायोजन के लिए उपयोगी – वर्तमान युग में समाज में निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं। प्रतिदिन नवीन आविष्कार और समस्याएं हमारे सामने उपीस्थत हो रहीं है। इन परिर्वतनों के फलस्वरूप समाज में व्यवस्था स्थापित करना कठिन कार्य हो गया है। परन्तु शैक्षिक तकनीकी द्वारा यह कार्य सरलतापूर्वक किया जा रहा है। 
  7. अध्यापक- निर्देशन में सहायक – वर्तमान युग में शिक्षण के क्षेत्र में अध्यापक को आवश्यक निर्देशन की निरन्तर आवश्यकता पड़ती रहती है। अन्यथा वह अपने दायित्व को सफलतापूर्वक नहीं निभा सकता। इस कार्य में शैक्षिक तकनीकी उसकी अत्यधिक सहायता कर सकती है।
  8. श्रव्य – दृश्य साधानों का प्रयोग – शिक्षा के क्षेत्र में श्रव्य – दृश्य साधनों की भूमिका नितांत आवश्यक है। क्योंकि अध्यापक ही जानता है कि बच्चों की आवश्यकताएं क्या हैं और उनकी समस्याओं का हल कैसे निकाला जा सकता है। 
  9. समस्याओं के समाधान में सहायक – आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में समय – समय पर समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। यदि उन समस्याओं का शीघ्र हल नहीं निकाला जाता तो बच्चों को उक्ति नहीं दिया जा सकता। शैक्षिक तकनीकी इन समस्याओं का हल निकाले में हमारी मदद करती है। 
  10. अनुसंधान के लिए उपयोगी- शिक्षा प्रणाली को प्रभावशाली बनाना अध्यापक का परम कर्त्तव्य है। उसे छोटे बच्चों की आवश्यकतओं और इच्छाओं के अनुसार शिक्षण कार्य करना होता है। इसके लिए अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान करता है। उसके लिए अनुसंधान तभी सफल हो सकते हैं यदि वह इन अतुसंधानों को अच्छी प्रकार जानता हो तथा छोटे बच्चों पर अपने अनुसंधान को लागू करने में समर्थ हो। 
See also  दर्शनशास्त्र क्या है ? दर्शनशास्त्र तथा शिक्षा

शिक्षा की तकनीकी तथा शिक्षा में तकनीकी में अन्तर : 

शैक्षिक तकनीकी के दो मुख्य आधार स्वीकार किये गये हैं – ये हैं – शिक्षा की तकनीकी तथा शिक्षा में तकनीकी। कहने सुनने में तो ये दोनों एक जैसे लगते है, परन्तु इन दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। इसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है- 

  1. शिक्षा की तकनीकी – शिक्षा की तकनीकी का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी उपकरणों के प्रयोग के साथ – साथ मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, विधियों, युक्तियों, प्रणालियों तथा क्रियाओं के प्रयोग की भी चर्चा की जाती है। शैक्षिक तकनीकी वस्तुतः शिषण की तकनीकी है। इसमें शैक्षिक समस्याओं का हल निकालने के लिए उनका पूरी तरहा से विश्लेषण किया जाता है और सुव्यवस्थित ढंग से उसे नियन्त्रित किया जाता है। फलस्वरूप शैक्षिक प्रक्रिया प्रभावशाली बन जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें तकनीकी उपकरणों के साथ मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त भी  जुड़ जाते हैं। सभी प्रकार के तकनीकी उपकरण, सूक्ष्म अध्ययन, अधिक्रमित अध्ययन, शिक्षा के प्रतिमान, टोली अध्ययन आदि सिद्धान्तों का इसमें प्रयोग किया जाता है। 
  2. शिक्षा में तकनीकी – ” शिक्षा में तकनीकी” का क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है। “शिक्षा की तकनीकी” की भांति इसमें केवल तकनीकी उपकरणों का प्रयोग किया जता है। शिक्षा में तकनीकी का सम्बन्ध केवल कुध ऐसे यन्त्रों का विकास करने से है जो मैकोनिकल होते हैं। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि इसमें तकनीक का सम्बन्ध हार्डवेयर से है। शिक्षा में तकनीकी के अन्तर्गत दृश्य-श्रव्य सामग्री का विशेष महत्त्व होता है। ” शिक्षा में तकनीकी” के अन्तर्गत श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री की सहायता से विद्यार्थियो को स्तरीय शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षा में तकनीकी का मतलब यह है कि शिक्षा में तकनीकी का प्रयोग करके विद्याभर्थियों को शिक्षण प्रदान करना। इसके लिए हम रेतियों, टेलीविजन, कम्प्यूटर, टेलीफोन, टेप रिकॉर्डर, स्लाइड प्रोजेक्टर, फिल्म पट्टी प्रोजेक्टर, चलचित्र इनरनेट, शिक्षण मशीन आदि की सहायता से बच्चों को शिक्षा दी जाती है। 

अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा में तकनीकी का क्षेत्र शिक्षा की तकनीकी की अपेक्षा छोटा है। इसका सम्बन्ध हार्डवेयर से है। परन्तु शिक्षा की तकनीकी में तकनीकी उपकरणों के अतिरिक्त, विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों व प्रणालियों का भी प्रयोग किया जाता है। 

 

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रोशन एक्का AllGovtJobsIndia.in मुख्य संपादक के रूप में कार्यरत हैं,रोशन एक्का को लेखन के क्षेत्र में 5 वर्षों से अधिक का अनुभव है। और AllGovtJobsIndia.in की संपादक, लेखक और ग्राफिक डिजाइनर की टीम का नेतृत्व करते हैं। अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें। About Us अगर आप इस वेबसाइट पर लिखना चाहते हैं तो हमें संपर्क करें,और लिखकर पैसे कमाए,नीचे दिए गए व्हाट्सएप पर संपर्क करें-

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