खेल विधि का अर्थ: Play Way Method खेल विधि से संबंधित महत्वपूर्ण गुण/लाभ

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खेल विधि का अर्थ (Play Way Method) khel vidhi kya hai

खेल विधि क्या है सामाजिक अध्ययन में खेल विधि का प्रयोग :  खेल विधि का अर्थ: (Play Way Method) – खेल बालकों की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है । शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रवृत्ति का उचित उपयोग करके अध्यापक शिक्षण को रूचि कार बनाने में सफल हो सकता है तथा साथ ही छात्रों का अनैतिक तथा व्यक्तित्व विकास कर सकता है | खेलो और बच्चों का आपस में गहरा संबंध है । खेल बच्चे की एक अनिवार्य प्रक्रिया है । यदि विद्यालय के पाठ्यक्रम पढ़ाने की विधियों तथा विद्यालय के अनुशासन का प्रबंध इस प्रकार किया जाए कि वह खेल का रूप धारण कर ले और बालक स्कूल में पूर्णता रुचि लेने लग जाए तथा साथ ही वह पढ़ाई से संबंधित बहुत सी समस्याओं को हल करने के योग्य हो सकते हैं । खेलों के शिक्षा में महत्व के संबंध में कार्लग्रस ने कहा है कि” खेल शिक्षा प्रदान करने का एक साधन है, खेल द्वारा पढ़ना लिखना आसान तथा रूचि पूर्ण हो जाता है । खेल में बालक की रचनात्मक शक्तियों का विकास होता है तथा खेल शिक्षा का व्यवहारिक रूप है । विद्यालय में खेलकूद को निश्चित साधनों द्वारा इस प्रकार से संगठित और नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि वह पूर्ण रुप से शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त कर सके ।  खेल विधि से अभिप्राय विद्यालय में प्रयोग की जाने वाली उन सभी विधियों से है जो विद्यालय के कार्य को खेल में बदल देती है । यह विद्‌यालय विद्यालय के सभी कार्यों में स्वतंत्रता, मनोरंजन तथा स्वच्छता पर जोर देती है । यह विधि विषय की अपेक्षा बच्चों पर बल देती है । इस विधि के द्वारा बालकों का सर्वे गिनीय विकास होता है । खेल विधि के द्वारा बालक को जो ज्ञान प्राप्त होता है । वह आत्मप्रेरित, रूचिपूर्ण एवं व्यवहारिक होता है । खेल के द्वारा बालक जो भी कार्य करता है, वह किसी के दबाव में नहीं बल्कि स्वेच्छा से करता है, इससे नीरस कार्य भी आनंददायक हो जाता है और बालक को प्रसन्नता अनुभव होती है ।  सरल शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि खेल विधि से अभिप्राय मुसीबत तथा आंसुओ के बिना शिक्षा प्राप्त करना है । 

खेल विधि का शिक्षा में महत्व 

  1. क्रिया द्वारा सीखना – खेलों के द्वारा अधिकतर कार्य बालकों के हाथ से कराए जाते हैं । इस प्रकार इस में बालकों को करके सीखने का अधिक अवसर प्राप्त होता है । 
  2. सीखना रोजगार हो जाता है – खेल द्वारा शिक्षण पद्धति में बालक जो भी कार्य करता है वह किसी के दबाव में आकर नहीं बल्कि स्वेच्छा से करता है । 
  3. व्यक्तिगत का स्वर्ण गिनिक विकास – खेलों के द्वारा शिक्षा प्रदान करते समय उन विधियों का प्रयोग किया जाता है जो लचीली होती । इसलिए इसके द्वारा बालकों को व्यक्तिगत विभिन्नता ओके समायोजन का अवसर मिल जाता है । 
  4. ज्ञान का स्थानीय होना – खेलों के द्वारा बालक जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह रुचिपूर्ण, आतम प्रेरित तथा व्यवहारिक होता है । इस प्रकार से प्राप्त किए गए ज्ञान को है कभी नहीं भूल पाते । वह ज्ञान स्थाई बन जाता है । 
  5. व्यक्तिगत योग्यताओं का विकास – खेलों के द्वारा शिक्षा प्रदान करते समय उन विधियों का प्रयोग किया जाता है जो लचीली होती है । इसलिए उनके द्वारा बालकों को व्यक्तिगत विभिन्नता ओके समायोजन का अवसर मिल जाता है । 

खेल विधि से संबंधित महत्वपूर्ण गुण/लाभ

  1. बाल केंद्रित इस विधि को मुख्य विशेषता यह है कि यह बच्चे को शिक्षा का केंद्र बिंदु बनाकर चलती है । इसमें बच्चों की रूचि योग तथा मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर शिक्षा दी जाती है और यह बात मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । 
  2. मूल प्रवृत्तियों से समाशोधन वह मार्ग बदलने में सहायक – मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे का आरंभिक व्यवहार मूल प्रवृत्तियों से अभिप्रेरित होता है । यदि इन प्रवृत्तियों का समाशोसन ना किया जाए या उनका मार्ग ना बदला जाए तो बच्चे का व्यवहार समाज विरोधी होने लगता है और इनका दमन कर दिया जाए तो उनका व्यक्तित्व दब जाता है । खेल विधि से बच्चे की कुछ मूल प्रवृत्तियों के समाशोसन में मदद मिलती है । उदाहरण के लिए बच्चों में युयुत्सा की मूल प्रवृत्ति होती है । खेल विधि में प्रतियोगिता द्वारा उनकी इस प्रवृत्ति की संतुष्टि होती है और उसके व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास भी होता रहता है ।
  3. सामाजिक विकास में सहायता – समूह में विभिन्न खेल खेलने से बच्चों का सामाजिक विकास करने में भी मदद मिलती है । रायबर्न के अनुसार, यह विधि बालक को दूसरे के साथ रहने, उनकी सहायता करने, उन्होंने सहयोग प्रदान करने, उनका प्रदर्शन और अनुसरण करने की शिक्षा दी है । 
  4. व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक – इस विधि की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इससे बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने में मदद मिलती है । इससे उसके व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक तथा भावनात्मक सभी पक्षों का समान रूप से विकास होता है । 

रायर्बन के शब्दों में, यह विधि बालक की शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करके उनके व्यक्तित्व को संतुलित करती है ।

  1. स्वशिक्षा में सहायक – मनोविज्ञान की मान्यता है कि बच्चा जो बात स्वयं करके या खेल-खेल में सीखता है उसका प्रभाव उस पर अधिक पड़ता है । खेल विधि की विशेषता यह है कि यह भी बच्चों को खेल के द्वारा स्वयं सीखने पर बल देती है । 
  2. आत्म – अनुशासन – आत्म अनुशासन भी इस विधि की महत्वपूर्ण विशेषता है । आज मनोवैज्ञानिक भी बच्चों को स्वतंत्रता देकर उन्हें स्वयं अनुशासन में रखने की शिक्षा देने का समर्थन करते हैं । कोधार के शब्दों में, ” यह विधि बालक को स्वअनुशासन, स्वप्रगति और स्वास्थ शिक्षा का प्रशिक्षण देती है । 
  3. अध्यापक की बदली हुई भूमिका – यह विधि अध्यापक की बदली भूमिका प्रस्तुत करता है इसके अनुसार अध्यापक का कार्य बच्चे को स्वयं सीखने के लिए उचित वातावरण प्रदान कर करना तथा आवश्यकता के अनुसार उसका मार्गदर्शन करना है । इस विधि का अध्यापक संबंधी या दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिक है । 

खेल विधि की आलोचना / सीमाएं  / दोष 

आलोचक निम्न कारणों से इस विधि की आलोचना करते हैं – 

  1. उच्च कक्षाओं के लिए अनुपयोगी ( Not Useful for Higher Classes) – यह तो ठीक है कि छोटे बच्चों को खेल विधि द्वारा प्रभावशाली ढंग से सिखाया जा सकता है पर जहां तक उस कक्षा का संबंध है उनमें यह विधि उपयोगी नहीं है । 
  2. खेल विधि से सब प्रकार का ज्ञान नहीं दिया जा सकता (All Type of Knowledge cannot be Imparted through Play Way) – ज्ञान का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है । सभी विषयों का सारा ज्ञान खेलों के माध्यम से नहीं दिया जा सकता है । आलोचकों का मानना है कि इसे अन्य विधियों के साथ तो अपनाया जा सकता है । केवल इसी से सारी शिक्षा देना संभव नहीं है । 
  3. खर्चीली (Expensive) – खेल विधि अत्यंत खर्चीली है । इसमें जिन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है वह काफी महंगे है । बच्चों को भ्रमण आदि पर ले जाना अभी काफी महंगा पड़ता है । अतः सामान्य विद्यालयों द्वारा शिक्षा संभव नहीं है । 
  4. प्रशिक्षित क्षेत्र एवं समर्पित अध्यापकों का अभाव (Lack of trained and Devoted Teachers)- यह समिति द्वारा शिक्षक देने के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त ऐसे अध्यापकों की आवश्यकता पड़ती है जो अपने व्यवसाय के प्रति पूरी तरह से समर्पित होने पर आज के समय में इस प्रकार के अध्यापकों की व्याख्या करना ही कठिन कार्य है । 
  5. जीवन संघर्ष के लिए तैयारी नहीं करती – निरंतर खेलते रहने से बच्चों ने जीवन के प्रति गंभीरता कम होती जाती है जिससे बच्चा भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का सामना नहीं कर पाता । जीवन तो एक संघर्ष है जिसमें सफल होने के लिए व्यक्ति में गंभीरता का होना आवश्यक है । खेलों में तो बच्चे रुचि से भाग लेते हैं लेकिन जीवन व्यक्ति को अनेक कार्य रुचि ना होने पर भी करने पड़ते हैं । यही नहीं शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भी व्यक्ति को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करना होता है और इसमें यह विधि बिल्कुल मदद नहीं करती । 

खेल विधि से संबंधित महत्वपूर्ण गुण / लाभ निम्नलिखित है – 

  1. बाल केंद्रित (Child Centred) – इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि यह बच्चे को शिक्षा का केंद्र बिंदु मानकर चलती है । इसमें बच्चों की सूचियों तथा मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर शिक्षा दी जाती है और यह बात मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । 
  2. मूल प्रवृत्तियों के समाशोधन वाह मार्ग बदलने में सहायता ( helpful in sublimation and Redirected of Instincts) – मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों का आरंभिक व्यवहार मूल प्रवृत्तियों से अभिप्रेरित होता है । यदि इन प्रवृत्तियों का समाशोधन ना किया जाए या उनका मार्ग ना बदला जाए तो बच्चे का व्यवहार समाज विरोधी होने लगता है और यदि इनका दमन कर दिया जाए तो उसका व्यक्तित्व दब जाता है । खेल विधि से बच्चे की कुछ मूल प्रवृत्तियों के समाशोधन में मदद मिलती है । उदाहरण के लिए बच्चों में युयुत्सा की मूल प्रवृत्ति होती है । खेल विधि में प्रतियोगिता द्वारा उसकी इस प्रवृत्ति की संतुष्टि होती है । और उसके व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास भी होता रहता है । 
  3. सामाजिक विकास में सहायक ( Helpful in a Social Development) – समूह में विभिन्न खेल खेलने से बच्चे का सामाजिक विकास करने में भी मदद मिलती है । रायबर्न के अनुसार, “यह विधि बालक को दूसरे के साथ रहने, उसकी सहायता , उन्हें सहयोग प्रदान , उनका पथ प्रदर्शन और अनुसरण करने की शिक्षा देती है ।” 
  4. व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक ( helpful in Alround Development of Personality) –इस विधि की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसे बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने में मदद मिलती है । इससे उनके व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक तथा भावनात्मक सभी पक्षों का समान रूप से विकास होता है । 

रायबर्न के शब्दों में, ” यह विधि बालक की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक शक्तियों का विकास करके उनके व्यक्तित्व को संतुलित करती है ।” 

  1. स्वशिक्षा में सहायक ( Helpful in Auto Education)  – मनोवैज्ञानिक की मान्यता है कि बच्चा जो वश में करके या खेल खेल में सीखता है उसका प्रभाव उस पर अधिक रहता है खेल विधि की यह विशेषता है कि वह भी बच्चों को खेल के द्वारा स्वयं सिखाने पर बल देती है । 
  2. आत्म अनुशासन (Self Discipline) – आत्म अनुशासन भी इस विधि की महत्वपूर्ण विशेषता है । आज मनोवैज्ञानिक भी बच्चों को स्वतंत्रता देकर उन्हें स्वयं अनुशासन में रहने की शिक्षा देने का समर्थन करते हैं । कोछार के शब्दों में, यह विधि बालक को सुबह स्वंअनुशासन, स्वंप्रगति और स्वास्थ शिक्षा का प्रशिक्षण देती है । 
  3. अध्यापक की बदलती हुई भूमिका ( Change Role of Teacher) -यह विधि अध्यापक की बदली भूमिका प्रस्तुत करता है । इसके अनुसार अध्यापक का कार्य बच्चे को स्वंय सीखने के लिए उचित वातावरण प्रदान करना तथा आवश्यकता के अनुसार उसका मार्गदर्शन करना है ।  

निष्कर्ष : (Conclusion) 

प्रिय पाठको आशा है आपको खेल विधि क्या है समझ में आ गया होगा, यद्यपि आलोचकों ने इस विधि को व्यवहारिक तथा महंगी आदि बताकर इसकी कटु आलोचना की है । फिर भी शिक्षा में इसकी उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता । यह विधि मनोविज्ञान के सिद्धांत पर आधारित है । यह सीखने को रोचक एवं स्वाभाविक बनाती है तथा यह भी बताती है कि शिक्षा अनुभवों से प्राप्त होती है । यहां तक कि खेल जैसी गतिविधि भी बच्चे को अनेक महत्वपूर्ण शैक्षिक अनुभव प्रदान कर सकती है । दूसरी बात यह है कि यह विधि तो स्कूल तब बनती है जब हम विधि के स्थान पर केवल खेल को महत्व देने लगते हैं । 

 

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