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Socialization Processes समाजीकरण की प्रक्रिया-परिभाषा-CTET TET NOTES

By Roshan Ekka

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 मानव एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज में रहता है और अपना विकास करता है । समाज के बिना उसका विकास असंभव है तथा वह समाज की परम्पराओं, विचारों रहन सहन के तरीकों को अपनाता है । इस प्रकार से कह जा सकता है यदि वह समाज के अनुसार अपना जीवन नही बीतता तो उसका समुचित विकास नहीं हो सकता । इस प्रकार वह समाज की परम्पराओं और मान्यताओं को अपनाकर ही सामाजिक बनता है । इस प्रकार  समाजीकरण का अभिप्राय सीखने की उस प्रक्रिया से है जो बाल के जन्म के बाद शरू हो जाती है और जीवन भर सामाजिक गुणों को सीखने और उसे व्यवहार मे ग्रहण करने में लगती है और वह सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने लगती है । इस प्रकार से यह एक प्रक्रिया जिसमें मानव समाज द्वारा सिखता है जो उसके आस पास समाज में दिखता है । अर्थतः एक व्यक्ति का समाजीकरण सामाजिक व्यवहार को सीखना है ।

समाजीकरण की परिभाषाएँ-

  1. जॉनसन के मतानुसार, “ समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है । “

( “ Socialization is learning, that enables the learner to perform social role.”) – H.M Johnson

  1. हार्टल और हार्टल ने समाजीकाण की परिभाषा देते हुए कहा है कि – “ यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आप को समुदाय के आदर्शी के अनुकूल बनाता है । “

(“ The process by which the Individual comes to confirm to the norms of the group.”) – Hartley & Hartley

  1. ग्रिन के अनुसार, “ समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, निज स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है । “

( “ Socialization is the process by which the child acquires a cultural content along with selfhood and personality.”) A .W.Green

  1. स्वीर्वट एंव गिलन के अनुसार ,समजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपनी संस्कृति के विश्वासो,अभिवृतियों, मूल्यो और प्रथाओं को ग्रहण करते हैं ।  

(“Socialization is the process by which the people acquires the belief, attitudes,values and customs of their culture”.) – Stevart and Glynn

इन सभी परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि समाजीकरण के द्वारा मानव समाज में ठीक प्रकार से रहना सीखता है। वह समाज के नियमों तथा व्यवहार को अपनाकर अपना विकास करता है।

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समाजीकरण की प्रक्रिया – (Process of Socialization)

जब बच्चा जन्म लेता है न ही वह सामाजिक होता है न ही  असामाजिक धीरे धीरे वह समाज के सम्पर्क में अता है वैसे वैसे उस में सामाजिक या असामाजिक गुण विकसित होने लगते है ।  बच्चा जब इस संसार में आता है, तो वह इस समाज के रीतिरिवाजों परम्पराओं से अज्ञान होता है परन्तु जन्म लेते ही उस में सामाजिक

वातावरण का प्रभाव पड़ने लगता है, और जैसे जैसे बाल की आयु बढ़ती जाती है वैसे वैसे वह एक सामाजिक प्राणी बनते जाता है । इस प्रकार से वह सामाजिक रीतिरिवाजों, परम्पराओं आदि में परिपक्व हो जाता है।

समाजीकरण की अवधारणाएँ Concept of Socialization

  • समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाती है इस के अभाव में व्यक्ति सामाजिक प्राणी नही बन सकता । समाज मे रह कर ही वह आना विकास कर सकता है । इन सभी के परीणम स्वरूप सामाजिक व्यक्तित्व का विकास होता है। सामाजिक प्राणी बनने की प्रक्रिया ही समाजीकरण कहलती है । जिन पद्धतियों तरीकों द्वारा बालक का समजीकरण होता है, वह समाजीकरण की प्रक्रियाएँ कहलती हैं । ये दो प्रकार की हैं – (क) समजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ  (ख)समाजीकरण की गौण प्रक्रियाएँ

(क) समाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ – इस प्रक्रिया में विशष कर बालक के पालन पोषण की विधियाँ की ज्ञानकरी दी जाती है ।

  1. सुझाव – बच्चा परिवार के लोगों से जो ज्ञान प्राप्त करता है वह घर परिवार के लोगों का  सामाजिक व्यवहार देखाते हुए उनके सुझावों से सीखता है। घर के सदस्य माता पिता बच्चों को कुध नियमों, रीतिरिवाजों, मान्यताओं परम्पराओं को अपनाने के सुझाव देतें हैं,और बालक उन सामाजिक नियमों, प्रथाओ तथा विचारो को ग्रहण करता है और इस प्रकार से वह समाज का सदस्य बन जाता है ।
  2. पालन-पोषण की विधियाँ – जब बच्चा जन्म लेता है तो वह असहाय होता है। माता पिता ही वह व्यक्ति होते है जो बाला का देखभाल करते है। जिस में माँ की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो उसका पालन पोषण करती है। पालन पोषण की तरीके बालक के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, देखा गया है पालन-पोषण की विधियाँ द्वारा ही बालक का समाजीकरण  होता है।
  3. अनुकरण – बच्चा जब छोटा होता है तब वह आपने आस – पास जो कुछ देखता है उसे अनुकरण करता है, अनुकरण समाजीकरण की प्रमुख सीढ़ी है। जैसे-जैसे से बालक बड़ा होता है, आपने आस पास विभिन्न लोगो के सम्पर्क में आता है और उनके व्यवहार का अनुकरण करके सामाजिक बनता है।
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(ख)  समाजीकरण की गौण प्रक्रियाएँ  –

  1. प्रतियोगिता (Competition) : प्रतियोगिता का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी वस्तु को प्राप्त करने का प्रयास करना। प्रतियोगिता समजीकरण को बढ़ावा देती है। हर व्यक्ति समाज में अपाना मान – सम्मान और आदर चहता है।इस करण से वह सामाजिक व्यवहार को सीखने में लगा रहता है। इसको प्राप्त करने के लिए वह प्रतियोगिता में भी भाग लेता है।
  2. सहयोग( Co-operation) – सहयोग का अर्थ होता है मिलकर काम करना। बालक छोटी आयु में ही सहयोग करना सीख जाते है। पहले बालक आपने परिवार के लोगो का सहयोग करते है। आगे चलकर वह अपनी आयु के बच्चों के साथ मिलकर सहयोग करते है और उनका सहयोग लेते है। सहयोग द्वारा ही बच्चा बड़ा होकर असंख्य सामाजिक परम्पराओं,मूल्यों तथा प्रथाओं को सीख जाता है।
  3. संघर्ष (Conflict) – संघर्ष का अर्थ है दो व्यक्तियों अथवा दो समूहों के बीच किसी वस्तु को प्राप्त करने की कोशिश या होड़ करना कहलाती है। व्यक्ति को समाज में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बिना संघर्ष करे वह सफलता प्राप्त नही कर सकता इससे व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है, इस संघर्ष के द्वारा व्यक्ति में समाजीकरण होता है। अतः संघर्ष करना सही में समाज का आवश्यक तत्व है और सभी व्यक्ति को संघर्ष करना ही पड़ता है।
  4. तादात्मीकरण (Identification) –  एक व्यक्ति द्वारा स्वयं को दूसरे व्यक्ति के अनुसार व्यवहार को ग्रहण करना या ढालने की प्रक्रिया को तादात्मीकरण कहते हैं। ज्यादातर बच्चे आने घर परिवार आस – पड़ोस, सगे -सम्बंधियों, आयापकों,मित्रो,पारिवारिक सदस्यों आदि से तादात्मीकरण स्थापित करते हैं। अतः तादात्मीकरण बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया में विशेष महत्व रखते है।

बच्चे के समाजीकरण में शिक्षा का योगदान –

बच्चों के समाजीकरण में शिक्षा (अध्यापक) का विशेष योगदान होता है –

  1. व्यक्तित्व का विकास – जब बच्चा स्कूल अथवा काँलेज में दाखिला लेता है तो उस के बाद ही विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास होने लगता है। यहाँ बच्चा बहुत से लोगों के सम्पर्क मे आता है जैसे शिक्षको, मित्रो आदि द्वारा जैसे – वह अध्यापक तथा पुस्तकों से बहुत कुछ ज्ञाण प्राप्त करता है। सीखता हैै इस प्रकार इन सभी  द्वारा उसके सामाजीकरण में सहायता मिलती है।
  2. अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान – शिक्षा की मददत से बच्चा अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्य को जान जाता है। और फिर वह अपने कर्तव्यो का पालन करने लगते है और अपने अधिकरों को समझ जाते है। जिस से उसका समाजीकरण होता हैै।
  3. संस्कृति का ज्ञान – शिक्षा द्वारा ही बच्चे अपनी संस्कृति अर्थात् अपनी रीति – रिवाजों, परम्पराओं, धार्मिक मान्यतओं आदि के बारे में जानते है। अतः संस्कृति भी बच्चों के समाजीकरण में बढ़ावा देती है।
  4. नियमों का पालन – विधालय में शिक्षा प्राप्त करने के साथ साथ वह विद्यालय द्वारा दिए गए नियमो का पालन करते है। यही नही इस करण से वह अनुशासन में रहने लगते है जिससे बच्चों का समाजिकरण होता है।
  5. विभिन्न लोंगो से सम्पर्क – स्कूल अथवा कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद विधार्थी अनेक लोगों के संपर्क में आता है इस प्रकार से अनेक लोगों से उसका सामाजिक संपर्क बन जाता है। स्कूल और कालेज समाजीकरण के मुख्य माध्यम हैँ।
  6. समायोजन – शिक्षा द्वारा बच्चों में समायोजन की भावना विकसित होती है। शिक्षाकाल में बालक एक दूसरे के साथ रहते है और अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। अतः इस करण से बच्चे अपना समायोजन करना सीख लेते हैं।
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निष्कर्ष: इस करण से बच्चे के समाजीकरण में शिक्षा की बहुत महत्वपूर्णता हैै। विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते हुए बलाकों में बहुत से गुणों का विकास होता है। वे विभिन्न रीति रिवाजो, परम्पराओ, अधिकरों, कर्तव्य, भावनाओं आदि द्वारा अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं।

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