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Sindhu Ghati Sabhyata( सिन्धु घाटी सभ्यता )For IAS Pre/UPSC State PSC By-Raj Holkar

By Roshan Ekka

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प्रिय पाठको, ऑल गवर्नमेंट जॉब इंडिया आपके लिए महत्वपूर्ण विषय इतिहास से “प्राचीन भारत का इतिहास” से सिन्धु घाटी सभ्यता पर  स्टडी नोट्स ले कर आए हैं जिस के Educator – Raj Holkar  है। उन्होंने इस  विषय को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है, जो कि सही में लाजवाब है। आप इस नोट्स के द्वारा IAS Pre Exam, UPSC Pre/ Mains, MPPSC & Other all State PSC’s की परीक्षा की सफलता हेतु उत्तम पाएंगे।

धन्यवाद!!

आपका मित्र (Team: www.All GovtJobsIndia.in)  

Table of Contents

सिन्धु घाटी सभ्यता

  • इस सभ्यता के प्रथम अवशेष हडप्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे।
  • कार्बन डेटिंग पद्धति द्वारा हडप्पा सभ्यता की तिथि 2500 ई० पू० से 1750 ई० पू० माना गया है।
  • हडप्पा सभ्यता को भारतीय उप महाद्वीप की प्रथम नगरीय क्रांति माना जाता है।
  • भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेंक्जेडंर कनिंघम को मानते हैं।
  • भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना का श्रेय वायसराय ‘ लार्ड कर्जन ‘को प्राप्त हैै।
  • हडप्पा सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी।

हडप्पा सभ्यता की सीमाएं :

 

 

 

नदियों के किनारे बसे हडप्पा कालीन नगरः

i) हडप्पा रावी नदी
ii) मोहनजोदडो  सिन्धु नदी
iii) लोथल भोगवा नदी
iv) कालीबंगा घग्घर नदी
v) रोपड  सतलज नदी
vi) आलमगीरपुर

 

 

 हिण्डन नदी
vii) सुतकांगेडोर

 

 

दाश्त नदी
viii) कुणाल

 

 

सरस्वती नदी
ix) बनवाली

 

 

सरस्वती नदी
x) चन्दूदडो सिन्धु नदी

 

  • हडप्पा कालीन स्थल एवं खोजकर्ता (उत्खनन कर्ता )

¡) मोहनजोदडो –

 

 

राखल दास बनर्जी , मार्टिमर व्हीलर
ii) हडप्पा –

 

 

दयाराम साहनी, माधो स्वरूप वत्स
¡¡¡) चन्दूदडो – एन.गोपाल मजूमदार एवं अर्नेस्ट मैके

 

 

¡v) लोथल –

 

 

रंगनाथ राव
v) कालीबंगा – अमलानन्द घोष, एवं ब्रजवासी लाल

 

 

v¡)  बणावली –

 

 

रवीन्द्र सिंह विष्ट
v¡¡) रोपड़ –

 

 

यज्ञदत्त शर्मा
viii) सुल्कांगेंडोर-

 

 

ऑरेल स्टाइन, जार्ज एफ. डेल्स

– नगर विन्यास पद्धति :

  • यह जाल पद्धाति ( Grid system ) पर आधारित है।
  • नगर में आयताकार या वर्गाकार चौडी गलिया होती थी जो एक – दूसरे को समेकांण पर काटती थी।

– वास्तुकला :

  • भारत में वास्तुकला का आरंभ सिंधुवासियों ने किया था।
  • सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
  • सडकें एक दूसरे को समेकांण पर काटती थी।
  • भवन दो मंजिले भी थे।
  • दरवाजे सड़को की ओर खुलते थे।
  • मोहनजोदडो की सबसे बडी इमारत एक विशाल ‘अन्नागार है जिसका आकार 150×75 मी. है
  • फर्श कच्चा होता था केवल कालीबंगा में पक्के फर्श के साक्ष्य मिले हैं।

– कृषि :

  • विश्व में कपास का उत्पादन सर्वमथम सिन्धुवासियों ने किया।
  • सिन्धुवासी चावल ( साक्ष्य – लोथल से ), बाजरा ( साक्ष्य – लोथल व सैराष्ट्र ) , रागी, सरसों ( साक्ष्य – कालीबांग ) का उत्पादन करते थे।
  • सिन्धुवासी हल ( साक्ष्य – बनावली ) से परिचित थे।
  • कालीबंगा से जुते हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
  • गन्ना का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ।

– पशुपालन :

  • सिन्धुवासी  हाथी व घोड़े से परिचित थे। किन्तु उन्हें पालतू बनाने में असफल रहे। घोडे का साक्ष्य सुरकोटदा ( अस्थि पंजर प्राप्त ) से प्राप्त हुआ है।
  • सिन्धुवासियों को गैंडा, बंदर, भालू, खरहा आदि जंगली जानवेरां का ज्ञान था।
  • शेर का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।

– व्यापार एवं वाणिज्यः

  • सिन्धु सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नही था क्रय – विक्रय वस्तु विनिमय पर आधारित था।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग अन्य सभ्यता के लोगों  के साथ व्यापार करते थे।

– प्रमुख आयार्तित वस्तुएं :

टिन – अफगानिस्तान , ईरान

तांबा – खेतडी ( राजस्थान )

चांदी – अफगनिस्तान, ईरान

सोना – अफगानिस्तान एवं दक्षिण भारत

सीसा – ईरान, अफगानिस्तान एवं राजस्थान

लाजर्वद  – मेसोपोटामिया एवं अफगानिस्तान

-संभवत : हडप्पा सभ्यता में शिल्पियों एवं व्यापरियों का शासन था।

 

धर्म : –

  • हडप्पा सभ्यता से मंदिर का कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुआ है।
  • मोहनजोदड़ो की एक मोहर से स्वास्तिक चिन्ह प्राप्त हुआ है।
  • हडप्पा सभ्यता में मुख्य रूप से कूबड़ वाले सांड की पूजा होती थी।
  • हडप्पा सभ्यता में वृक्षपूजा के साक्ष्य भी मिले है पीपल एवं बबूल की पूजा होती थी।
  • सिन्धु सभ्यता में प्रेतवाद, भक्ति और पुनर्जन्म वाद के बीज मिलते है।

– अन्येषिट के प्रकार :

  • हाप्पा सभ्यता में अन्त्येष्टि 3 प्रकार से होती थी – ¡) पूर्ण समाधिकरण ¡¡) आंशिक समाधिकरण ¡¡¡) दाह संस्कार
  • लोथल से युग्म शवाधान का साक्ष्य मिला है।

नोट्: विज्ञन इसको सती प्रथा के रूप में देखते हैं।

– लिपि :

  • सिन्धु लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार करने वाला प्रथम व्यक्ति अलेक्जेंडर कनिंघम थे।
  • सिंधु लिपि को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास वेडले ने किया था।
  • सिंधु लिपि भाव चित्रात्मक थी।
  • सिंधु लिपि के चित्रों में मछली, चिड़िया, मानवाकृति आदि चिन्ह मिलते हैं।
  • सिन्धु लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी।

– अन्य महत्वपूर्ण तथ्य : –

  • सिन्धु सभ्यता को प्राक् ऐतिहासिक ( Prehistoric) युग में रखा जा सकता है।
  • सिन्धु सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्य सागरीय थे।
  • सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं।
  • लोथल एवं सुत्कोतदा सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे।
  • मनके बनाने का कारखाना लोथल और चन्हूदड़ों  से प्राप्त हुआ हैं।
  • सिंधु सभ्यता की मुख्य फसलें गेहूं एवं जौ थी।
  • तौल की इकाई 16 के अनुपात में थी।
  • सिंधु सभ्यता के लोग धरती की पूजा उर्वरता की देवी के रूप में करते थे।
  • सिंधु सभ्याता मैं मातृ देवी की पूजा की जाती थी।
  • सिंधु सभ्यता मातृसत्तात्मक थी।
  • पर्दा-प्रथा एवं वैश्यावृति सिंधु सभ्यता में प्रचलित थी।
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– हडप्पा कालीन स्थल :

1)हडप्पाः रावी नदी के किनारे, 1921 में दयाराम साहनी द्वारा खोज की 

  • शंख का बना बैल, नटराज की आकृति वाली मूर्ति प्राप्त।
  • पैर में सांप दबाए गरुड़ का चित्र , मछुआरे का चित्र प्राप्त।
  • सिर के बल खडी नग्न स्त्री का चित्र जिसके गर्भ से पौधा निकला दिखाई दे रहा है प्राप्त ।

2) मोहन जोदड़ो : सिंधु नदी किनारे, 1922 में राखल दास बनर्जी द्वारा खोजा

  • भवन पक्की ईंटो द्वारा निर्मित – सीढ़ी का साक्ष्य मिला
  • प्रवेश द्वारा गली में – कांसे की एक नर्तकी की मूर्ति प्राप्त
  • एक श्रृंगी पशु आकृति वाली मोहर प्राप्त।
  • इसे मौत का टीला भी कहा जाता था ।

3) लोथल : भोगवा नदी के किनारे गुजरात में स्थित।

  • गोदी बाड़ा  के साक्ष्य प्राप्त, चावल एवं बाजरा के साक्ष्य प्राप्त
  • दो मुंह वाले राक्षस के अंकन वाली मुद्रा प्राप्त।
  • पंचतंत्र की चालाक लोमडी का अंकन प्राप्त
  • ममी का उदाहरण प्राप्त
  • बतख, बारह सिंगा, गोरिल्ला के अंकन वाली मुद्दा प्राप्त ।

4) कालीबंगा : घग्घर नदी के किनारे राजस्थान में स्थित

  • इसका शाब्दिक अर्थ ‘ काली’  चूडियां है ।
  • प्राक् हड़प्पा एवं विकसित हड़प्पा दोनों के साक्ष्य प्राप्त
  • एक सींग वाले देवता के साक्ष्य प्राप्त।
  • कपाल में छेद वाले बालक का शन प्राप्त ( शल्य क्रिया का उदाहरण)

5) चन्दूदेड़ा :

  • मनके बनाने का कारखाना प्राप्त
  • ईंट पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पद चिन्ह प्राप्त

6) बनवाली : (हरियाणा के हिसार जिले में स्थित )

  • अच्छे किस्म के जौ की प्राप्ति ।
  • हल की आकृति वाला खिलौना प्राप्त।

7) रोपड़ः ( पंजाब में स्तलज नदी के किनारे स्थित )

  • मानव के साथ कुत्ते के दफनाए जाने का साक्ष्य प्राप्त ।

8) धौलावीरा : ( गुजरात के भरूच जिले में स्थित )

  • जल प्रबंधन के लिए 16 जलाशयों की प्राप्ति।

9) सुरकोटदा: ( गुजरात के कच्छ मे स्थित ) 

  • शाँपिंग कॉम्पलेक्स के साक्ष्य प्राप्त
  • घोड़े की ओस्थायां प्राप्त ।

– हडप्पा सभ्यता के पतन के कारणः

  • पारिस्थिति असंतुलन – जल प्लावन
  • शुष्कता (घग्घर का सूखना ) – बाह्य आक्रमण
  • नदी मार्ग मे परिवर्तन  – प्रशासनिक शिथिलता
  • बाढ़ का आना – जलवायु परिवर्तन

– क्षेत्रफल की द्वाष्टि से हड़प्पा कलीन नगरों का क्रमः

 राखीगढ़ी ( सबसे बड़ा ) > मोहनजोदारो >हडप्पा > गनेरीवाला > धौलाबीरा    

नोट्ः धौलावीरा भारत में स्थित सबसे बड़ा हडप्पा कालीन स्थल है।

वैदिक काल – 

=> समय निर्धारण :

ऋग्वैदिक काल – 1500 ई० पू० – 1000 ई० पू० तक

उत्तरवैदिक काल – 1000 से 600 ई० पू० तक

 ऋग्वैदिक काल

  • वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
  • ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था।
  • परिवार पितृ सत्तात्मक होता था ।
  • ऋग्वैदिक काल में मूलभूत व्यवसाय कृषि व पशुपालन था। ( मुख्य व्यवसाय पशुपालन )

– वैदिक कालीन वेदः

  • वेदों की संख्या 4 है – ¡) ऋगवेद ¡¡) यजुर्वेद ¡¡¡) सामवेद ¡v ) अथर्व वेद

नोट् : त्रचावेद, यजुर्वेद तथा सामवेद को वेद त्रयी कहा जाता है ।

¡ ) ऋग्वेद :

  • इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।
  • इसका संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन ( वेदव्यास )  ने किया हैं।
  • इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र हैं।
  • दूसरा एवं सातवां मण्डल सबसे पुराना है। इन्हें वंश मण्डल कहते हैं।
  • दसवां मण्डल सबसे नवीन है।
  • ऋग्वेद का पाठ करने वाला पुरोहित ‘ होतृ ( होता ) ‘ कहलाता है ।
  • नौवां मण्डल सोम को समर्पित है।
  • दसवें मण्डल के पुरूष सूक्त में शूद्रों का उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वेद एवं ईरानी ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता में समानता पायी जाती है।
  • ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी इसे नदीतमा कहा गया है।
  • ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख 3 बार एवं गंगा का उल्लेख 1 बार ( 10 वां मण्डल ) मे मिलती है।
  • ऋग्वेद में पुरूष देवताओं की प्रधानता है। इन्द्र का वर्णन सर्वाधिक ( 250 बार ) है।
  • ‘ अस्तो मा सदगमय ‘ ऋग्वेद से लिया गया है।

¡¡) सामवेद

  • यह भारतीय संगीत शास्त्र पर प्राचीनतम ग्रन्थ है।
  • इसका पाठ करने वाला पुरोहित उदगातृ कहलाता है।
  • सामवेद के प्रथम दृष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
  • सामवेद से सर्वप्रथम 7 स्वरों ( सा, रे, गा, मा…) की जानकारी प्राप्त होती है।
  • सामवेद व अथर्ववेद के कोई अरण्यक नही है।
  • सामवेद का उपवेद ‘ गान्धर्ववेद ‘ कहलाता है।

¡¡¡) यजुर्वेद :

  • इसमें यज्ञ की विधियों  / कर्मकाडों पर बल दिया गया है।
  • इसका पाठ करने वाला अध्वर्यु कहलाता है।
  • इसमें 40 मण्डल और 2000 मंत्र हैं।
  • इसमें यज्ञ एवं यज्ञ बालि की विधियों का प्रतिपादन क्रिया गया है।
  • यजुर्वेद में हाथियों के पालने का उल्लेख है।
  • यजुर्वेद में सर्वप्रथम राजसूय तथा वाजपेय यज्ञ का उल्लेख मिलता है।

¡v) अर्थवेद :

  • इसमें तंत्र मंत्र , जादू टोना, टोटका , भारतीय औषधि एव विज्ञान सम्बन्धी जानकारी दी गयी है।
  • इसकी दो शाखाएं – शौनक, पिप्लाद हैं।
  • इसे ब्रह्म वेद भी कहा जाता है।
  • इसमें वास्तु शास्त्र का बहुमूल्य ज्ञान उपलब्ध है।
  • अथर्ववेद के उपनिषद मुण्डक, माण्डूक्य और प्रश्न है।
  • अथर्ववेद के कुरु के राजा परिक्षित का उल्लेख है जिन्हें मृत्यु लोक का देवता बताया गया है।
  • अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित को ब्रह्म कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित को ब्रहन कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की 2 पुत्रियाँ कहा गया है।

– आरण्यक :

  • वनों मे रचने के कारण ये अरण्यक कहे जाते हैं।
  • वर्तमान में उपलब्ध 7 प्रमुख आरण्यक -ऐतरेय, तैत्तरीय मह्यादिन, शाखायन, मैत्रायणी , तल्वकार तथा वृहदारण्यक हैं।

–  उपानिषदः

  • यह भारतीय दार्शनिक विचारों का प्राचीनतम संग्रह है।
  • उपनिषदों को भारतीय दर्शन का स्त्रोत, जनक, पिता कहा जाता है।

वेदांग : 

-वेदांगों की संख्या 6 है: 

  • शिक्षा वेदायी पुरुष की नाक
  • व्याकरण वेदायी पुरुष का मुख
  • छ्न्द वेदायी पुरुष के पैर बताए जाए हैं।
  • कल्प सूत्र
  • निरूक्त
  • ज्योतिष
See also  भारत की जलवायु -Climate of India Geography IAS Study Notes Download in PDF-By: Raj Holkar

-वेदों से सबंधित ब्राहाण:

वेद                       ब्राह्मण

ऋग्वेद                   ऐतरेय

सामवेद            पंचविश, जैमिनिय

यजुर्वेद                  शतपथ

अर्थववेद                 गोपथ

 

– वेदों से संबधित उपनिषद:

वेद                      उपनिषद

ऋग्वेद                   ऐतरेय

सामवेद                 छान्दोग्य

यजुर्वेद                बृहदारण्यक

अथर्ववेद                  मुण्डक

– वेंदो से संबंधित अरण्यक:

वेद                       अरण्यक

ऋग्वेद                     ऐतरेम

सामवेद                छान्दोग्य, जैमिनीय

यजुर्वद                 बृहदारण्यक

अथर्ववेद                  कोई नही

 

– वेदों से संबंधित उपवेद:

ऋग्वेद              आयुर्वेद

सामवेद            गन्धर्ववेद

यजुर्वेद              धनुर्वेद

अथर्ववेद           शिल्पवेद

– ऋग्वैदिक राजनैतिक स्थिति :

  • काबिलाई संरचना पर आधारित ग्रामीण संस्कृति थी।
  • राजा को जनस्य, गोपा , पुर भेन्ता, विशपति या गोपति कहा जाता था।
  • रित्रयां सभा समिति एवं विदथ में भाग लेती थी।
  • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल अथवा परिवार भी।
  • “ जन “ प्रशासन की सर्वोच्च इकाई थी।
  • राजा नियमित स्थायी सेना नहीं रखता था।

सभा : श्रेष्ठ (वृद्ध) अभिजाता लोगों की संस्था थी तथा कुछ न्यायिक अधिकार प्राप्त थे।

समितिः यह जनसाधारण की संस्था थी। अर्थवेद मैं सभा एवं समिति को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है।

विदथः संभवतः यह आर्यो की प्राचीनतम संस्था थी। विदथ में लूटी गयी वस्तुओं का बंटवारा होता था। ऋग्वेद में विदथ का सर्वाधिक ( 122 बार ) प्रयोग हुआ है। विदथ में आध्यात्मिक विचार विमर्श भी होता था। उत्तरवैदिक काल में इसे समाप्त कर दिया गया था।

 

–  वैदिक काल के प्रमुख क्षेत्र:

¡) सप्त सैंधव – सिंधु , रावी, व्यास, झेलम , चिनाब, सतलज, सरस्वती का क्षेत्र।

ii) ब्रह्मवर्त – दिल्ली के समीप का क्षेत्र

¡¡¡) ब्रह्मर्षि – गंगा – यमुना का दोआब

¡v) आर्यावर्त  – हिमालय से विनध्याचल पर्वत का क्षेत्र

v) दक्षिणापथ – विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण का भाग

vi) उत्तरापथ – विन्ध्याचल के उत्तर में हिमालय का प्रदेश

– अन्य तथ्य :

  • अथर्ववेद के अनुसार राजा को आय का 1/16 वां भाग मिलता था।
  • वैदिक काल में “ बलि” एक कर था।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में पुत्री कों “कृपण ” कहा गया है तथा दुःखो का स्त्रोत बताया है।

– ऋग्वैदिक समाज :

  • ऋग्वैदिक सामजिक संबंध का आधार गोत्र या जन्म मूलक संबंध था।
  • व्यक्ति की पहचान गोत्र से होती थी।
  • समाज कुध हद तक समता मूलक था।
  • ऋग्वैदिक काल में समाज तीन भगों में विभाजित था-

¡)  पुरोहित ¡¡) राजन्य ¡¡¡) सामान्य

  • ऋग्वेद के 10 वें मण्डल में पुरुष सूक्त में चार वर्णों  की उत्पति का वर्णन मिलता है।
  • समाज पितृसन्तात्मक था परन्तु स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी।
  • स्त्रियों का उपनयन संस्कार किया जाता था तथा शिक्षा की व्यवस्थ की जाती थी।
  • स्त्रियां सभा, समिति एवं विदथ में भाग ले सकती थी।
  • महिलाओं को पति के साथ यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था।
  • अपाला, घोषा, लोपामुद्र , विश्ववारा, तथा सिक्ता को वैदिक ऋचाएं लिखने का श्रेष दिया जाता है।
  • बाल विवाह, तलाक, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा, बहुपत्नीप्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • विधवा विवाह एवं नियोग प्रथा का प्रचलन था।
  • इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी परन्तु दासों को घरेलू कार्यो में लगाया जाता था न कि कृषि कार्यो में।
  • जीवन भर अविवाहित रहने वाली लडकियो को ‘ अमाजू ‘ कहा जाता था।
  • मुख्य भोज्य पदार्थ चावल एवं जौ था।
  • घोड़े का मांस अश्वमेध यज्ञ के अक्सर पर खाया जाता था।
  • गाय को अधन्या ( न मारने योग्य) कहा जाता था।

 

– आभूषण :

कर्ण शोभन – कान के आभूषण

कुरीर – सिर पर धारण करने वाला आभूषण

निष्क – गले का आभूषण

ज्योचनी – अंगूठी

– ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था :

  • ग्रामीण संस्कृति एवं पशुचारण मुख्य तथा कृषि गौण व्यवसाय था।
  • सम्पति का मुख्य रुप गोधन था।
  • आर्य मुख्यतः 3 धातुओं – सोना, कांसा व तांबा का उपयोग करते थे।
  • तांबे और कांसे के लिए अयस शब्द का उपयोग किया जाता था। 
  • ये लोग लोहे से परिचित नहीं थे लोहे का प्रयोग उत्तर वैदिक काल में हुआ।
  • ऋगवेद में एक ही अनाज यव (जौ) का उल्लेख है।
  • वस्त्र बनाना प्रमुख शिल्प था ये काम स्त्रियां करती थी।
  • ऋग्वेद में कपास का उल्लेख नहीं मिलता
  • व्यापरियों को पणि कहा जाता था।
  • मुद्दा के रूप में निष्क एवं शतमान का उल्लेख मिलता है परन्तु ये नियमित मुद्धा नहीं थी।

–  ऋग्वैदिक धर्म की स्थिति :

  • लोग बहुदेववादी होते हुए भी एंकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे।
  • धर्म मुख्यतः प्रकृति पूजक एवं यज्ञ के केन्द्रित था।
  • प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण कर उनकी पूजा की जाती थी।
  • इन्द्र ( गाय खोजने वाला ), सरमा, ( कुतिया ) , वृषय (बैल ) व सूर्य ( अश्व के रूप में ) पूजा की जाती थी।
  • ऋग्वैदिक देवकुल में देवियों की संख्या नगण्य थी।
  • 33 देवताओं की तीन श्रेणियां – ¡) आकाश का देवता ¡¡) अन्तरिक्ष का देवता ¡¡¡) पृथ्वी का देखता थी।

¡)  आकाश के देवता : धौस, वरूण , मित्र, सूर्य, पूजण, विष्णु , आदित्य

¡¡) अंतरिक्ष का देवता : इन्द्र, वायु, पर्जन्य , यम ,प्रजापति 

¡¡¡) पृथ्वी के देवताः पृथ्वी, अगिन, सोम, वृहस्पति आदि।

  • धौस ( आकाश का देवता )  को ऋग्वैदिक कालीन देनों में सबसे प्राचीन माना जाता है।
  • ऋग्वेद में इन्द्र को समस्त संसार का स्वामी एवं वर्षा का देवता माना गया है।
  • अगिन, देवताओं एवं मनुष्यो के बीच में मध्यस्थ था।
  • वरुण को ऋतस्यगोपा कहा गया है।
  • सोम को पेय पदार्थ का देवता माना गया है।
  • गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में उल्लेखित है इसकी रचना विश्वामित्र ने की थी जो सूर्य को समर्पित है।
  • ऋग्वेद धर्म की दृष्टि मानवीय तथा इहलौकिक थी। इसमें मोक्ष की संकल्पना नही थी।
  • उपासना की विधि – प्रार्थना और यज्ञ थी ।
  • यज्ञ के स्थान पर प्रार्थना का अधिक प्रचलन था।

– वैदिक में प्रयोग किए जाने वाले शब्द :

राजा – गोप्ता

See also  प्राचीन भारत में गुप्त काल से सम्बन्धित गुफा चित्रांकन

अतिथि – गोहंता / गोहन

युद्ध – गविष्ट, गेसू , गम्य

गाय – अधन्या

लांगल – हल

सीता – खेत में हल चलाने के बाद बनी नालियॉ / निसान

बढ़ई – तक्षन

नाई – वाप्ती

मरूस्थल – धन्व

अनाज – धान्य

उर्वरा – जुते हुए खेत

खिल्य – चारागाह

बेकनाट – सूदखोर

व्राजपति – चारागाह प्रमुख

कुलप – परिवार का प्रधान

स्पश – गुप्तचर

 

– वर्तमान नदियों के ऋजैदिक नाम :

कुमु – र्करम

कुया – काबुल

वितस्ता – झेलम

विपाशा – व्यास

दृष्टवती – घगधर

अस्किनी – चिनाब

पुरुषणी – रावी

शुतद्री – सतलज

सदानीरा – गंडक

– ऋग्वैदिक देविया :

अदिति, ऊषा, पृथ्वी, आप: , रात्रि,अरण्यानी, इला

– ऋग्वैदिक यज्ञः

¡) राजसूय यज्ञ – राजा के सिंहासनरोहण से संबंधित

¡¡) बाजपेय यज्ञ – शौर्य प्रदर्शन व मनोरंजन से यज्ञ

¡¡¡) अश्वमेध यज्ञ – राजनीतिक विस्तार हेतु ( घोडे की बलि दी जाती थी) इसमें कुछ सैक्षिकों के साथ घोड़ा स्वतंत्र छोडा जाता था। वह घोड़ा जितने क्षेत्रों मे जाता था वहाँ राजा का अधिकर हो जाता था ।

¡v) अगिनष्टोम यज्ञ – देवताओं को प्रसन्न करने हेतु अग्नि को पशुवलि दी जाती थी।

 

उत्तर वैदिक काल

  • इसका समय 1000 ई० पू० से 600 ई० पू० तक का माना जाता है।
  • इसमें क्षेत्रगत राज्यों का उदय होने लगा ( कबीले आपस में मिलकर राज्यों का निर्माण करने लगे । )
  • तकनीकि द्वाष्टि से लौह युग की शुरुआत हुई। सर्वयथम लोहे को 800 ई० पू० के आसपास गंगा युमना दोआव में अतरंजी खेडा में प्राप्त किया गया ।
  • उत्तरवैदिक काल के वेद अर्थर्ववेद में लोहे के लिए श्याम अयस एवं कृष्ण अयस शब्द का प्रयोग किया गया ।
  • इस काल में वर्णन्यवस्था का उदय हुआ।

– उत्तर वैदिक राजनीतिक व्यवस्था

  • काबेलाई ढ़ांचा टूट गया एवं पहली बार क्षेत्रीय राज्यों का उहय हुआ।
  • जन का स्थान जनपद ने ले लिया ।
  • युद्ध गायों के लिए न होकर क्षेत्र के लिए होने लगा।
  • सभा एवं समितियों पर राजाओं, पुरोहितों एव धनी लोगें का अधिकार हो गया।
  • विदथ को समाप्त कर दिया गया।
  • स्त्रियों को सभा की सदस्यता से बहिष्कृत कर दिया गया।
  • राजा अत्यधिक ताकतवर हो गया एवं राष्ट्र शब्द की उत्पति हुई।
  • बलि के अतिरिक्त ‘ भाग तथा शुल्क’ दो नए कर लगाये गए ।

उत्तरवैदिक सामाजिक व्यवस्था –

  • वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित न होकर जन्म पर हो गया।
  • इस समय लोग स्थायी जीवन जीने लगे ।
  • चारों वर्ण – पुरोहित , क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र स्पष्टतः स्थापित हो गए।
  • यज्ञ का महत्व बढ़ा और ब्राहमणों की शक्ति में अपार वृद्धि हुई।
  • ऐतरेय ब्राह्मणा में चारों वर्णां के कार्यों का उल्लेख मिलता है।
  • इस काल में तीन आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थ की स्थापना हुई।

नोट् : चौथा आश्रम ‘सन्यास’ महाजनपद काल में जोड़ा गया था।

  • जावालोपनिषद में सर्वपथम चोरों आश्रमों का उल्लेख मिलता है ।
  • स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त था।
  • बाल विवाह नहीं होता था।
  • विधवा विवाह , नियोग प्रथा के साथ अन्त : जातीय विवाह का प्रचलन था।
  • स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आयी।

– उत्तरवैदिक आर्थिक स्थिति:

  • इस काल में मुख्य व्यवसाय कृषि बन गया ( कारण: लोहे की खोज एवं स्थायी जीवन )
  • मुख्य फसल धान एवं गेहू थी।
  • यजुर्वेद में ब्रीहि ( धान) , यव ( जै ) गोधूम ( गेहू) की चर्चा मिलती है।
  • उत्तरवैदिक काल में कपास का उल्लेख नहीं हुआ। ऊन शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • उत्तरवैदिक सभ्यता भी ग्रामीण ही थी। इसके अंत में हम नगरों का आभास पाते हैं हीस्तनापुर एव कौशाम्बी प्रारंभिक नगर थे।
  • निर्यामत सिक्के का प्रारंभ अभी नही हुआ था।
  • सामान्य लेन देन वस्तु विनिमय द्वारा होता था।
  • निष्क, श्तामान, पाद एवं कृष्णल माप की इकाइयां थी।
  • सर्वप्रथम अर्थवेद में चांदी का उल्लेख हुआ है।
  • लाल मृद भांड इस काल में सर्वाधिक प्रचलित थे।

– उत्तरवैदिक धार्मिक स्थिति:

  • धर्म का स्वरूप बहुदेववादी तथा उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति था।
  • प्रजापति, विष्णु तथा रुद्र महत्वपूर्ण देवता के रूप में स्थापित हो गए।
  • सृजन के देवता प्रजापति का सर्वोच्च स्थान था।
  • पूष्ण सूद्रों के देवता थे।
  • यज्ञ का महत्व बढ़ा एवं जटिल कर्मकाण्डों का समावेश हुआ।
  • मृत्यु की चर्चा सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में मिलती है।
  • सर्वपथम मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है।
  • पुनर्जन्म की अवधारणा सर्वप्रथम वृहदारण्यक उपनिषद में मिलती है।

आश्रम व्यवस्था :

  • आश्रम व्यवस्था की स्थपना उत्तरवैदिक काल में हुई।
  • छांदोग्य उपनिषद में केवल 3 तीन आश्रमों का उल्लेख है।
  • सर्वप्रथम जावालोपानिषद में 4 आश्रम बताए गए है ।

नोट् : उत्तरवैदिक काल में केवल 3 आश्रमों ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ व वानप्रस्थ ) की स्थापना हुई थी। चौथा आश्रम।( संन्यास ) महाजनपद काल में स्थापित किया गया।

आश्रम   आयु    कार्य   

पुरूषार्थ

ब्रह्मचर्य 0 – 25 वर्ष   ज्ञान प्राप्ति    धर्म
गृहस्थ आश्रम 26 – 50 वर्ष सांसारिक जीवन अर्थ व काम
वान प्रस्थ आक्षम 51 – 75 वर्ष मनन / चिंतन/ ध्यान मोक्ष
सन्यास आश्रम 76 – 100 वर्ष मोक्ष हेतु तपस्या मोक्ष

 

नोटः गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों में श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि इस आश्रम में मनुष्य त्रिवर्ग ( पुरुषार्थो ) – धर्म , अर्थ एवं काम का एक साथ उपयोग करता है।

-इसी आश्रम में त्रि – ऋण से निवृत होता है – ऋषि ऋण – (ग्रंथों का अध्ययन),पितृ ऋण – पुत्र प्राप्ति ,देव ऋण – (यज्ञ करना)

नोटः शूद्र मात्र गृहस्थ आश्रम को ही आपना सकते थे अन्य आश्रमों को नहीं।

वर्ण व्यवस्था

  • ऋग्वेद के 10 वें मण्डल में 4 वणों का उल्लेख है।
  • ऋग्वैदिक काल में वर्णों का आधार कर्म था परन्तु उत्तरवैदिक काल में आधार जन्मजात बना दिया गया।

¡) पुरोहित : उत्पत्ति – ब्रह्मा के मुख से, कार्य – धार्मिक अनुष्ठान

¡¡) क्षत्रिय: उत्पत्ति – ब्रह्मा की भुजा , कार्य – शासक वर्ग / धर्म की रक्षा

iii) वैश्यः उत्पत्ति – ब्रह्मा की जंघाओं से , कार्य – कृषि / व्यापार / वाणिज्य

¡v ) शूद्रः उत्पत्ति – ब्रह्मा के पैर से, कार्य – सेवा कार्य ( अन्य वर्ण के लोगों की सेवा )

नोटउत्तरवैदिक काल में शूद्रों को गैर आर्य माना जाता था।

  • कर की अदायगी केवल वैश्य किया करते थे।

विवाहों के प्रकार :

¡) ब्रह्म विवाह – समान वर्ण में विवाह ( कन्या का मूल्य देकर )

¡¡) दैव विवाह – पुरोहित के साथ विवाह ( दक्षिणा सहित )

¡¡¡) आर्य विवाह – कन्या के पिता को वर एक जोडी बैल प्रदान करता था।

iv) प्रजापत्य विवाह – बिना लेन – देन, योग्य वर के साथ विवाह

v ) असुर विवाह – कन्या को इसके माता – पिता से खरीद कर विवाह

vi) गंधर्व विवाह – प्रेम विवाह

vii) राक्षस विवाह – पराजित राजा की पुत्री , बहन या पन्ति से उसकी इच्छा के विरुद्ध

viii) पैशाच विवाह – सोती हुई स्त्री, नशे की हालत में अथव विश्वासघात द्वारा विवाह

नोट : ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह व प्रजापत्य विवाह ब्राहमणों के लिए मान्य थे।

  • असुर विवाह केवल वैश्य और शूद्रों में होता था।
  • गन्धर्व विवाह केवल क्षत्रियों में होता था।

भारतीय दर्शन :

दर्शन   आधार ग्रंथ     प्रतिपादक
i) सांख्य दर्शन सांख्य सूत्र   कपिल मुनि
¡¡) योग दर्शन योग्य सूत्र    पतंजलि
¡¡¡) वैशेषिक दर्शन वैशेषिक सूत्र कणाद/ उलूक
¡v) पूर्व मीमांशा  पूर्व मीमांशा मूत्र  जैमिनी
¡v) उत्तर मीमांश  ब्रहन सूत्र  वेदन्याम/ वादरायण


अगर आप किसी विषय पर लिखना चाहते हैं तो हमें संपर्क करें – allgovtjobsindia@gmail.com

 

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