प्राचीन भारत का इतिहास – जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ( IAS/UPPCS/RAS/MPPSC एवं अन्य सभी राज्य सिविल सेवाओं के लिए –By- Raj Holkar
प्राचीन धार्मिक अन्दोलन
धार्मिक आन्दोलन के कारण :
- उत्तरवैदिक काल से वर्णव्यवस्था का जटिल हो जाना। अब वर्णव्यवस्था कर्म के आधार पर नहीं बाल्कि जन्म के अधार पर हो गयी थी।
- धार्मिक जीवन आंडबरपूर्ण, यज्ञ एवं बलि प्रधान बन चुका था।
- उत्तर वैदिक काल के अंत तक धार्मिक कर्मकणडों एवं पुरोहितों के प्रभुत्व के विरूद्ध विरोध की भावना प्रकट होने लगी थी।
- उत्तर – पूर्वी भारत में कृषि व्यवस्था का विकास भी धार्मिक अन्दोलन की शुरूआत का एक मुख्य कारण था।
जैन धर्म
स्थापना:
- जैन धर्म की स्थापना का श्रेय जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को जाता है।
- जैन धर्म को संगठित करने एवं विकसित करने का श्रेय वर्धमान महावीर को दिया जाता है।
- जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव या आदिनाथ थे।
जैन धर्म के तीर्थंकर एंव प्रतीक चिन्ह :
तीर्थंकर
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प्रर्ताक चिन्ह |
आदिनाथ/ ऋषभदेव | वृषण/ सांड़ / बैल
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अजितनाथ –
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हाथी |
संभवनाथ –
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घोड़ा |
माल्लिनाथ –
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कलश |
नेमिनाथ –
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नील कमल |
अरिष्टनेमी – | शंख |
पारर्वनाथ – | |
महावीर – | सिंह |
आदिनाथ / ऋषभदेव :
- ऋषभदेव का उल्लेख ऋगवेद, यजुर्वेद ,श्रीमद् भागवत , विष्णु पुराण, एवं भागवत पुराण में हुआ हैं।
- ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था एवं इनकी मृत्यु अट्ठवय पर्वत अर्थात् कैलाश पर्वत पर हुई थी।
- ऋषभदेव का प्रतीक चिन्ह सांड है।
पार्श्वनाथ :
- जन्म – वाराणसी में
- पिता – वाराणसी के राजा अववसेन
- माता – वामादेवी
- पत्नी – प्रभावित
- शरीर त्याग – पारसनाध पहाडी पर
- पार्श्वनाथ के अनुयायी निग्रंथ कहलाते थे।
महावीर स्वामी :
- ये जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर एवं जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक थे।
- जन्म – 540 ई० पू० , जन्मस्थल कुण्डग्राम
- पिता – सिद्धार्थ [ वज्जि संघ के ज्ञातृक कुल में ]
- माता – त्रिशला [ लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन ]
- दामाद – जामाली [ प्रथम शिष्य एवं प्रथम विरोधी ]
- बचपन का नाम – वर्धमान महावीर
- ज्ञान प्राप्ति स्थल – जृम्भिक गाँव, ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे
- प्रथम उपदेश – राजगृह में [ बितुलाचल पर्वत पर बैठकर ]
- निर्वाण – पावापुरी ( राजगृह ) में मल्ल गणराज्य के प्रधान सीस्तपाल के यहाँ 468 ई० पू० में।
जैन धर्म के पंच महावृत :
- अहिंसा – जीव की हिंसा न करना
- सत्य – सदा सत्य बोलना
- अपरिग्रह – संपीत्त एकत्रित नहीं करना
- अस्तेय – चोरी न करना
- ब्रह्मचर्य – स्त्री से संपर्क न बनाना [महावीर स्वामी ने जोडा था ]
जैन धर्म के त्रिरत्न :
- सम्यक ज्ञान – वास्तविक ज्ञान
- सम्यक दर्शन – जैन तीर्थकारों तथा उनके उपदेशों में दृढ़ आस्था तथा श्रद्धा रखना / सत्य में विश्वास
- सम्यक चरित्र – इंद्रियों एवं कोर्मों पर पूर्ण नियंत्रण
जैन धर्म की मान्यताएं :
- जैन धर्म में अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है।
- जैन धर्म में कृषि एवं युद्ध में भागलेने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- जैन धर्म में पुर्नजन्म व कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है।
- जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं की गयी है।
- जैन धर्म संसार की वास्तविकता को स्वीकार करता है।
- सृष्टि कर्ता के रूप में ईश्वर को स्वीकर किया गया है परन्तु स्थान जिन से नीचे रखा गया है।
जैन धर्म का दर्शाः
- जैन धर्म का दर्शन ‘ अनेकान्तवाद ‘ ‘ स्यादवाद’ एवं अनिश्वर वादिता हैै। जैन धर्म में ‘ सृष्टि की नित्यता ‘ को दर्शन के रूप में शामिल किया गया है।
- जैनर्धम ईश्वर एवं वेदों की सत्ता को अस्वीकर करता है।
- जैन धर्म मोक्ष एवं आत्मा को स्वीकार करता है।
नोट : स्यादवाद को अनेकान्तवाद या सप्लभांगी सिद्धांत भी कहा जाता है।
अनेकान्तवाद : जिस प्रकार जीव भिन्न भिन्न होते है उसी प्रकार उनमें आत्माएं भी भिन्न भिन्न होते है। इसके अनुसार अत्मा को परिर्वतनशील मानता है।
स्यादवाद : इसके अनुसार तत्व ज्ञान को पृथक पृथक द्वाष्टि कोण से देखा जाता है क्योंकि प्रत्येक काल में जीव का ज्ञान एक नहीं हो सकता है। ज्ञान की विभिन्ताएं सात प्रकार से हो सकती है अतः यह दर्शन सप्तभंगीनय भी कहा जा सकता है।
आनेश्वरवादिता एवं सृष्टि की नित्यता : जैन ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे। वे ईश्वर को विश्व का निर्माणकर्ता और नियन्ता भी नहीं मानते थे उनके अनुसार सृष्टि आदि काल से चलती आ रही है। और अनन्त काल काल तक चलती रहेगी। यह शाश्वत नियम के आधार पर कार्य करती हैै।
जैन धर्म की मौलिक शिक्षाएं:
- जैन धर्म में संसार को दुःख का मूलक माना गया है। व्यक्ति को सांसारिक जीवन की तृष्णाएं घेरे रहती है। यही दुःख का मूल कारण हैं।
- संसार त्याग तथा संन्यास मार्ग ही व्यक्ति को सच्चे मार्ग पर ले जा सकती है।
- संसार के सभी प्राणी अपने अपने संचित कर्मों के अनुसार ही कर्मफल भोगते ।
- कर्म से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता है।
पुद्रगल –
- जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव में विद्यमान आत्मा स्वभाविक रूप से सर्व शक्तिमान एवं सर्वज्ञाता होता है। किन्तु पुदगल के कारण यह बंधन में पड़ जाती है।
- पुदगल एक कर्म पदार्थ है।
- जब आत्मा में पुदगल घुल मिल जाता है तो आत्मा में एक प्रकार का रंग उत्पन्न करता है। यह रंग लेस्थ ( Leshya ) कहा जाता है। लेस्य 6 रंगो का होता है –
काला, नीला , धूसर – बुरे चरित्र का सूचक
पीला, लाल, सफेद – अच्छे चरित्र का सूचक
पुदगल से मुकित –
- पुदगल से मुक्ति पाने के लिए त्रिरत्न ( सम्यक ज्ञान, सम्यक – दर्शन एवं सम्यक र्चारत्र) का अनुशीलन अनिवार्य है।
- जब कर्म ( पुदगल ) का सवशेष समाप्त हो जाता है तब मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जैन संघ :
- महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की।
- संघ के अध्यक्ष [ क्रमानुसार ] : महावीर स्वामी -> सुधर्मन – > जम्वुस्वामी [ आन्तिम केवंलिन ]
संघ की संरचना :
तीर्थकर – अवतार पुरूष
अर्हत – जो निर्वाण के बहुत करीब थे।
आचार्य – जैन संन्यासी समूह के प्रधान
उपाध्यक्ष – जैन धर्म के अध्यापक / संत
भिक्षु – भिक्षुणी – ये संन्यासी जीवन व्यतीत करते थे।
श्रावक – श्रविका – ये गृहस्थ होकर भी संघ के सदस्य थे।
निष्क्रमण : जैन संघ में प्रवेश करने के लिए एक विधि संस्कार
जैन संघ में ऊँच नीच एवं अमीर – गरीब का कोई भेद नहीं था।
चन्दना : यह भिक्षुणियों के संघ की अध्यक्षा थी।
चेलना : यह श्राविकाओं संध की अध्यक्षा थी।
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में अन्तर:
श्वेताम्बर:
- मोक्ष प्राप्ति के लिए वस्त्र त्याग आवश्यक नहीं
- स्त्रियां मोक्ष की अधिकारी है।
- श्वेताम्बर मतानुसार महवीर स्वामी विवाहित थे।
- 19 वी तीर्थंकर महावीर स्वामी विवाहित थे।
- अंग, उपांग, प्रकीर्ण,छेद सूत्र, मूल सूत्र आदि को मानते थे।
- इसके प्रमुख्य स्थूल भट् थे।
दिगम्बर:
- मोक्ष के लिए वस्त्र त्याग आवश्यक
- स्त्रियां को निर्वाण संभव नहीं
- कैवल्य के बाद भी भोजन की आवश्यकता
- दिगम्बर मतानुसार महावीर स्वामी अविवाहित थे।
- 19 वीं तीर्थंकर मालिनाथ पुरुष थे।
- दिगम्बर इन साहिसों में विशास नहीं रखते थे।
- इसके प्रमुख भद्र वाहु थे।
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के उपसम्प्रदाय :
- श्वेताम्बर : पुजेरा / मूर्तिपूजक / डेरावासी / मन्दिर मार्गी ढूंदिया / स्थानकवासी / साधुमार्गी थेरापंथी।
दिगम्बर: बीसपंथी एवं तेरापंथी / तीस पंथी / गुमान पंथी / तोला पंथी
जैन साहित्य :
- जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। इसमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 4 मलसूत्र होते हैं।
- जैन धर्म के ग्रंथ अर्द्धमागधी [ प्राकृत ] भाषा में लिखे गए थे।
- भद्रबाहु ने कल्पसूत्र को संस्कृत में लिया
- आचरांगसूत्र : जैन मुनियों के लिए आचार नियम।
- भगवती सूत्र : महावीर के जीवन तथा कृत्यों एवं उनके समकालीनों का वर्णन। इसमें सोलह महाजनपदों का उल्लेख है।
- नायाधम्मकहाः महवीर की शिक्षाओं का संग्रह।
उपांग : इसमें ब्राह्मण का वर्णन, प्रार्णायों का वजीकरण, खगोल विद्या, काल विभाजन, मरणोपरान्त जीवन का वर्णन आदि।
प्रकीर्ण : जैन धर्म से संबंधित विधि विषयों का वर्णन।
देरसूत्र : इसमें भिक्षुओं के लिए उपयोगी नियम तथा विधियों का संग्रह
थेरावलि : इसमें जैन सम्पदाय के संस्थापकों की सूची दी गयी है।
नादि सूत्र एवं अनुयोग सूच : जैलियों के शब्दकोष हैं। इसमें भिक्षुओं के लिए आचरण संबंधी बातें हैं।
अन्य जैन ग्रंथ :
कल्पसूत्र – भद्रवाहु
कुवलयमाल – उद्योतन सूरी
स्यादवाद जरी – मल्लीसेन
द्रव्य संग्रह – नेमिचन्द्र
- प्रमुख जैन संगीतियां ( सम्मेलन )
- i) प्रथम जैन संगीति :
स्थान : पाटलिपुत्र वर्ष 300 ई० पू० , अध्यक्ष – स्थल भद्र
नोटः इसी सम्मेलन में जैन धर्म 2 सम्पदायों में बंट गया था –
- दिगम्बर (2) श्वेताम्बर
¡¡) द्वितीय संगीति :
स्थान – वल्लभी ( गुजरात ), वर्ष 512 ई० अध्यस – देवर्धिगण ( श्रमाश्रमण )
प्रमुख जैन तीर्थीस्थल :
- अयोध्या : यहाँ 5 तीर्थकरों का जन्म हुआ था। प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का जन्म यही हुआ था।
- सम्मेद शिखर : यहाँ पारर्वनाथ ने अपना शरीर त्यागा था।
- पावापुरी : यहाँ महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था।
- कैलाश पर्वत : यहाँ आदिनाथ / ऋषभदेव ने विर्वाण प्राप्त किया।
- श्रवण बेलगोला : यहाँ गौमतेश्वर बाहुवली की विशाल प्रतिमा है।
- माउन्ट आबूः यहाँ सफेद संगमरमर से बने दिलवाड़ा के जैनमंदिर स्थित हैं।
अन्य तथ्यः
- यापनीय सम्प्रदाय : यह जैन धर्म का एक संपदाय है जिसकी उत्पति दिगम्बर संप्रदाय से हुई यह शवेतांबरों की मान्यताओं का भी पालन करता है।
- जैन धर्म को आश्रय प्रदान करने वाले शासक :- महापद्रमन्द , धनानंद , बिम्बिसार, अजात शुत्र, उदयिन, चन्द्रगुप्त मौर्य , बिन्दुसार , सम्प्रति, चण्डप्रधोत , खारवेल, अमोघवर्ष , कुमारपाल आदि।