नमस्कार दोस्तों आज हम इस लेख में सूक्ष्म शिक्षण माइक्रो टीचिंग के बारे में जानेंगे यह टॉपिक बहुत ही इंपॉर्टेंट है,क्योंकि एग्जाम में इस वजह से काफी प्रश्न पूछे जाते हैंसूक्ष्म शिक्षण माइक्रो टीचिंग क्या हैतथा भारतीय परिवेश में इसकी विशेषताएं तथा उपयोगिता की चर्चा करेंगे आशा है आपको यह सीटेट B.Ed आदि टीचिंग परीक्षा के नोट्स जरूर पसंद आएंगे ।
सूक्ष्म शिक्षण माइक्रो टीचिंग “Microteaching” क्या है?
सूक्ष्म शिक्षण की धारणा को समझने के लिए अवश्य है कि इसमें प्रयुक्त सूक्ष्म या अंग्रेजी के माइक्रो का अर्थ ज्ञात कर लिया जाए । यहां माइक्रो का अर्थ है – लघु स्तर पर कार्य करना । यह अंग्रेजी के ‘ मेक्रो, शब्द का विपरीतार्थक है । जब किसी कार्य को वृहद् पैमाने पर किया जाता है तो उसे ‘मेक्रो’ उपगम का नाम दिया जाता है । किसी वृहद् या व्यापक रूप में किए जाने वाले कार्य को लघु स्तर पर आयोजित करने को सूक्ष्म शिक्षण कहा जाता है । सूक्ष्म शिक्षण में भी प्राय: यही भाव नित है ।
सुसम शिक्षण की परिभाषाएं इस प्रकार है –
ड़ी.डी . डब्ल्यू – एलान के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण से तात्पर्य शिक्षण क्रिया के उस सर ली कृत लघु रूप से है जिससे थोड़े विद्यार्थियों वाली कक्षा के सामने अल्प समय में संपन्न किया जाता है । (“Micro teaching is a scaled down teaching encounter in class size and time – Allen 1966) क्लिफट एवं उसके साथी के अनुसार – ” ( Clift, et.al, 1976) ” सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षण की वह विधि है जिससे शिक्षण अभ्यास को छोटे आकार की कक्षा में अल्प समय तक सीमित कर शिक्षण परिस्थिति को एक सरलतम और अधिक नियंत्रित स्वरूप प्रदान किया जाता है । ” ( ” Micro-Teaching is a teaching technique procedure which reduce the teaching situation to a simpler and more controlled encounter achieved by limiting the practice teaching to specific scale and reducing time and class size.”( Clift,et.al 1976) उपरोक्त परिभाषा की व्याख्या के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सूक्ष्म शिक्षण छात्र-छात्राओं एवं सेवारत अध्यापकों को शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराने हेतु अपनाई गई एक परीक्षण विधि है ।
सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं –
- पाठ का निरीक्षण छात्राध्यापक द्वारा संभव है ।
- इसमें घरवालों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है । इसलिए वांछित परिवर्तनों तक इस प्रविधि द्वारा शीघ्र पहुंचा जा सकता है ।
- इस अवधि में शिक्षण कौशल, पाठ्यवस्तु तथा कक्षा – अनुशासन आदि कक्षा के हर पक्ष को सरल किया जा सकता है |
- पाठ के तुरंत पश्चात ही छात्र अध्यापक को पृष्ठ पोषण (Feedback) प्रदान किया जाता है ।
- इसी पृष्ठभूमि के आधार पर छात्रों को अपना पाठ पूर्ण नियोजित (Replan) करने का अवसर मिलता है ।
- शिक्षा और शिक्षण की परिस्थितियों पर इससे अधिक प्रभावशाली नियंत्रण रखा जा सकता है ।
- छात्राध्यापक किसी एक कौशल का बार-बार अभ्यास करते हैं ।
- छात्रों के विभिन्न पात्रों को तुलना करने का अवसर मिलता है । क्योंकि इसमें पुन: नियोजन के पश्चात पाठ को दोहराया जाता है ।
महत्व एवं उपयोगिता
आधुनिक युग में सूक्ष्म शिक्षण निरंतर बढ़ता जा रहा है ।
- महाविद्यालय में ही परीक्षण – इस विधि द्वारा छात्र अध्यापक अपने प्रशिक्षण संस्थान में रहकर ही शिक्षण कौशल का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है इसके लिए उसे स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं जाना पड़ता है ।
- एक ही कौशल पर ध्यान केंद्रित – सूक्ष्म शिक्षण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि छात्र अपने शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक समय में केवल एक कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हैं ।
- तात्कालिक प्रतिपुष्टि – सुशांत पाठ की समाप्ति पर छात्र अध्यापक की तत्काल की प्रतिपुष्टि की जा सकती है । सूक्ष्म शिक्षण का यह एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता है क्योंकि तत्काल प्रतिपुष्टि के प्रभावों के बारे में किए गए शोध कार्यों द्वारा यह स्पष्ट हो चुका है कि तत्काल की प्रतिपुष्टि सूक्ष्म शिक्षण को प्रभावशाली बनाती है ।
- विद्यार्थियों की संख्या तथा शिक्षण अवधि में कमी – सूक्ष्म शिक्षण में जिस प्रकार की विषय वस्तु को कम करने करके तथा इकाइयों में प्रस्तुत किया जाता है उसी प्रकार उसमें पाठ के शिक्षण का समय 40 मिनट से घटाकर 6 मिनट कर दिया जाता है और कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या 40 से 60 से कम करके मात्र 5 से 12 तक कर दी जाती है ।
- अनुशासनहीनता की समस्या का अभाव – सूक्ष्म शिक्षण में विद्यार्थियों विद्यार्थियों की संख्या कम होती है शिक्षण की अवधि भी कम होती है विषय-वस्तु भी कम होती है तथा साथी छात्राध्यापक ही विद्यार्थी होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप अनुशासनहीनता की समस्या का अभाव होता है ।
- वस्तुनिष्ठ तथा क्रमबद्ध निरीक्षण – छात्र अध्यापक के सूक्ष्म पाठ का निरीक्षण उसके साथी तथा अध्यापक करते हैं । इसलिए शिक्षक तथा सहयोगी छात्र अध्यापकों द्वारा पाठ का क्रम बंद तथा वस्तुनिष्ठ अवलोकन किया जाता है ।
- वस्तुनिष्ठ तथा क्रम बंद निरीक्षण – छात्र अध्यापक के सूक्ष्म पाठ का निरीक्षण उसके साथी तथा प्राध्यापक करते हैं । इसलिए शिक्षक तथा सहयोगी छात्र अध्यापकों द्वारा पाठ का क्रम बंद तथा वस्तुनिष्ठ अवलोकन किया जाता है ।
- कक्षा कक्ष की जटिलताओं में कमी – इस प्रविधि कि यह भी अवधारणा है कि इसके प्रयोग से सम्मानीय कक्षा कक्ष की जटिलताओं को कम करने में सहायता मिलती है इसमें सभी कुछ सूक्ष्म होने के कारण कभी समस्या नहीं आती ।
- निरंतर परीक्षण – सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली के माध्यम से किसी भी शिक्षक के परीक्षा क्षण को निरंतर जारी रखा जा सकता है और शिक्षक की शिक्षण कला में सुधार लाया जा सकता है।
- अपेक्षाकृत सरल विधि – सूक्ष्म शिक्षण एक सरल विधि मानी गई है इसमें किसी प्रकार का भय नहीं होता । क्योंकि इस प्रवृत्ति में एक बार केवल एक ही शिक्षण कौशल का प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाता है और विद्यार्थियों की कक्षा में संख्या भी 5 से 10 तक होती है ।
- सुशांत पाठों का निरीक्षण – सूक्ष्म शिक्षण की सहायता से व्यक्तिगत शोषण पाठों का अवलोकन अध्यापकों के द्वारा किया जा सकता है ।
- सुशांत शिक्षण प्रणाली सिद्धांत और व्यवहार में एकीकरण – सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली के सिद्धांत द्वारा हमारे व्यवहार में एकीकरण लाने का अवसर प्राप्त होता है । इसके साथ-साथ इस प्रणाली के द्वारा अभिप्रेरणा सीखने के नियमों तथा अंश से पूर्ण की ओर आदि से संबंधित मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप से प्रयोग किया जा सकता है ।
- विशिष्ट शिक्षण – कौशलों के विकास में सहायक – सुशांत शिक्षण प्रणाली का एक महत्व यह भी है कि इस प्रणाली के द्वारा विशिष्ट प्रकार के शिक्षण कौशल ओ को विकसित किया जा सकता है |
- छात्र – छात्राओं के आत्म – मूल्यांकन में सहायक – इस प्रवृत्ति की सहायता से छात्र अध्यापक टेप रिकॉर्डर के माध्यम से अपनी आवाज को रिकॉर्ड करके आप सोए का मूल्यांकन कर सकते हैं जो कि उनके लिए प्रतिपुष्टि का कार्य करता है ।
सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएं – सुशांत शिक्षण भले ही महत्वपूर्ण है, परंतु इसकी कुछ सीमाएं भी है । जिनका विवरण इस प्रकार है –
- परीक्षण महाविद्यालयों में सूक्ष्म शिक्षण के लिए प्रयोगशालाओं का निर्माण बहुत महंगा पड़ता है । इसके लिए अनेक दृश्य श्रव्य साधनों का प्रयोग किया जाता है ।
- सूक्ष्म शिक्षण में काफी समय लगता है । जब तक अध्यापक कौशल में प्रवीणता प्राप्त नहीं कर लेता, उसे बार-बार शिक्षण करना पड़ता है ।
- सूक्ष्म शिक्षण का समय 5:00 से 10:00 मिनट का होता है । इसलिए पाठ अंशो में पढ़ा जाता है ।
- सूक्ष्म शिक्षण स्वयं में पर्याप्त विधि नहीं है । यदि अन्य विधियों का सहयोग लेकर सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग किया जाए तब ही यह अधिक प्रभावशाली हो सकता है ।
- अध्यापकों को इस विधि का परीक्षण देना आवश्यक है जो कि कम खर्चीला नहीं है ।
- इस प्रविधि में प्रशिक्षित तथा विशेषज्ञों का अभाव है जिसके कारण सूक्ष्म शिक्षण का कार्य आसान नहीं हो सकता ।
- सूक्ष्म शिक्षण के लिए कुशल तथा परीक्षित निरीक्षण की आवश्यकता पड़ती है ।
- सुशांत शिक्षण के कारण अध्यापक की रचनात्मक शक्ति का विकास नहीं होता । वह शिक्षण में अपने मौलिक विचार प्रस्तुत नहीं कर सकता । उसे केवल पाठ योजना के आधार पर ही पढ़ना पड़ता है ।
- सूक्ष्म शिक्षण केवल नियंत्रित वातावरण में ही सफल होता है । यद्यपि कक्षा में इस प्रकार का वातावरण तैयार करना बड़ा कठिन है ।
भारत में शिक्षण शिक्षण का प्रयोग
सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक परीक्षण तथा अध्यापक विकास की आधुनिकतम तकनीकी है जिसका विकास स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा साठ के दशक में हुआ । मूलत: इसका विकास कीथ, एकीसत्ताने, रॉबर्ट बुश तथा वेट एलेन के साथ पीएचडी करते समय किया था । भारत में भी इस शिक्षण का प्रयोग लंबे काल से चल रहा है सर्वप्रथम ( government Central pedagogical institute Allahabad) मैं डी .डी तिवारी ने इसका प्रयोग किया । आज सूक्ष्म शिक्षण तकनीक का प्रयोग भारत के विभिन्न अध्यापक शिक्षण महाविद्यालय में सफलतापूर्वक हो रहा है |
सूक्ष्म शिक्षण क्या है और इसकी विशेषताएं तथा उपयोगिता –
यदि आधुनिक शिक्षण पर हम गंभीर चिंतन करें तो हमें पता चलेगा कि इसमें अनेक त्रुटिया है । यही कारण है कि पर एक शिक्षण महाविद्यालय में क्रियात्मक अभ्यास की कमी दिखाई देती है । इसी कमी को दूर करने के लिए सूक्ष्म शिक्षण की व्यवस्था की गई है । इसका प्रयोग सेवाकालीन तथा पूर्व सेवाकालीन अध्यापकों के परीक्षण के लिए किया जाता है । अध्यापक शिक्षण की यह एक नवीनतम तकनीक है । इसमें विद्यार्थियों की संख्या 5 से 10 तक होती है । तथा समय भी 5 या 10 मिनट होता है, इसलिए पाठ भी छोटा कर दिया जाता है । इसके अंतर्गत अध्यापकों को विभिन्न शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराया जाता है । व्याख्या,प्रश्न पूछना,विवरण, पुनर्बलन आदि के द्वारा एक समय में एक ही कौशल का अभ्यास कराया जाता है । इसकी प्रमुख विशेषता यह है की अध्यापकों को पृष्ठ पोषण ( Feed back) मिल जाता है । वीडियो अथवा टेपरिकॉर्डर की सहायता से मूल्यांकन किया जाता है ।
विद्वानों ने शोषण शिक्षण की अलग-अलग परिभाषाएं दी है –
- एलन के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण से तात्पर्य शिक्षण क्रिया के उस सरलीकृत लघु रूप से है जिसे थोड़े विद्यार्थियों वाली कक्षा के सामने अल्प समय में संपन्न किया जाता है ।”
( Micro teaching is scaled down teaching encounter in class size and time.”)
- बी .एम के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण कम समय, कम छात्रों तथा कम शिक्षण क्रियाओं वाला प्रविधि है ।
- मैक एलिज एव आन्विन के अनुसार – ” शिक्षक परीक्षार्थी द्वारा सरलीकृत वातावरण में किए गए शिक्षण व्यवहारों को तत्काल प्रतिपुष्टि प्रदान करने के लिए क्लोज सर्किट टेलीविजन के प्रयोग को पराया सूक्ष्म शिक्षण कहा जाता है । ” (” The team micro teaching is most often appealed to the use of closed circuit television to give immediate feedback of a trainee teacher is performance in a simplified environment.”)
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया (कार्यविधि)
सूक्ष्म शिक्षण की कार्यविधि को अनेक चरणों में विभक्त किया जाता है । जिसका विवरण इस प्रकार है –
- सूक्ष्म शिक्षण का ज्ञान – सबसे पहले अध्यापक को विद्यार्थियों को शिक्षण शिक्षण का ज्ञान देना चाहिए उसे सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, महत्व तथा उपयोग पर समुचित प्रकाश डालना चाहिए ।
- अध्यापक द्वारा स्वयं चिंतन एवं मनन – अध्यापक का कर्तव्य बनता है कि वह सूक्ष्म शिक्षण के कौशलों के बारे में चिंतन एवं मनन करें और यह सोचे कि इनका प्रयोग कैसे किया जाता है इसका महत्व क्या है? ऐसा करने से विद्यार्थियों को ज्ञान प्राप्त करने में सुविधा होगी ।
- एक समय में एक कौशल का अभ्यास – एक समय में एक ही कौशल का अभ्यास करवाया जाना चाहिए । यही कारण है कि छात्र अध्यापक किसी एक विषय कौशल का चुनाव करता है और तत्ससंबंधी सामग्री दी जाती है
- एक कौशल का चयन – जब छात्र अध्यापक किसी एक कौशल को चुन लेता है तब उसे चुने गए कौशल की परिभाषा दी जाती है । साथ ही साथ उसे यह भी बताया जाता है कि यह कौशल कैसे पढ़ाया जाता है ।
- पांचवा चरण – पांचवें चरण में कुछ विशेषज्ञ छात्र अध्यापक के सामने एक कौशल का प्रदर्शन करते हैं । छात्र अध्यापक से यह आशा की जाती है कि उस कौशल से जुड़ी हुई आवश्यक जानकारी प्राप्त कर ले ।
- सूक्ष्म पाठ योजना का निर्माण – इस चरण में छात्र अध्यापक सूक्ष्म पाठ योजना का निर्माण करता है इस कार्य के लिए वह अपने प्राध्यापक से सलाह भी कर सकता है और उसकी सहायता भी ले सकता है ।
- शिक्षण कौशल के अभ्यास के लिए आवश्यक सामग्री – इस चोपन में एक शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए आवश्यक सामग्री जुटाई जाती है और अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने की व्यवस्था की जाती है ।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ( N.C.E.R.T) ने भारतीय परिवेश को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रारूप का सुझाव दिया है –
- छात्रों की संख्या – 5 से 10 तक
- छात्र – वास्तविक या सहपाठी छात्राध्यापक
- सूक्ष्म पाठ – शिक्षण प्रशिक्षण और सहपाठी छात्रा अध्यापक
- सूक्ष्म पाठ की अवधि – 6 मिनट
- सूक्ष्म शिक्षण चक्र( Micro Teaching) कि अवधि – 36 मिनट
इस अवधि का विभाजन इस प्रकार है –
- शिक्षण शास्त्र (Teaching Session) – 6 मिनट
- प्रतिपुष्टि शस्त्र (Feed Back Session) – 6 मिनट
- पुनः योजना सत्र (Re- Plan Session) – 12 मिनट
- पुनः अध्यापन शास्त्र (Reteach Session) – 6 मिनट
- पुन: प्रति पुष्टि शस्त्र (Refeed back Session) – 6 मिनट
- कुल समय – 36 मिनट
- कौशल का अभ्यास – आठवीं चरण में छात्राध्यापक अपने कौशल का अभ्यास करता है और 6 मिनट तक पाठ पड़ता है । तत्पश्चात निरीक्षण मापदंड के द्वारा विषय परीक्षण दिया जाता है । वीडियो टेप या ऑडियो टेप की सहायता से पाठ का निरीक्षण किया जाता है ।
- प्रतिपुष्टि की प्राप्ति – इस चरण में छात्राध्यापक को प्रतिपुष्टि मिलती है, जिनमें वह अपने कार्य की कमियों को जान लेते हैं ।
- पुनः पाठ योजना का निर्माण – इस चरण में छात्राध्यापक को फिर कुछ समय दिया जाता है, ताकि वह पुन : पाठ योजना का निर्माण कर सकें ।
- पुन: अध्यापन कार्य – छात्रा अध्यापक पुनः अध्ययन कार्य करता है और पुनः प्रतिपुष्टि द्वारा उसे अपनी कमियों का ज्ञान हो जाता है । उसे कुछ सुझाव देकर प्रोत्साहित किया जाता है ।
भारतीय परिवेश के संदर्भ में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ( N.C.E.R.T) द्वारा अनुमोदित सूक्ष्म शिक्षण चक्र –
- छात्रों की संख्या – 5 से 10 तक
- छात्र – वास्तविक या सहपाठी छात्र अध्यापक
- पर्यविक्षणकर्ता – शिक्षक/प्रशिक्षक या सहपाठी छात्र अध्यापक
- शिक्षण – 6 मिनट
- प्रतिपुष्टि – 6 मिनट
- पुन : योजना – 6 मिनट
- पुन : शिक्षण – 6 मिनट
- योग्य – 36 मिनट
अवस्थाएं – स्कूल शिक्षा से अभिप्राय है जो सेवाकालीन अथवा पूर्व कालीन शिक्षा अध्यापकों को दिया जाता है, ताकि उसकी अध्यापन प्रक्रिया में विकास हो । अध्यापकों को अध्यापक शिक्षण देने के लिए यह एक सर्वथा नवीन तकनीक है । यह तीन मानी गई है । जिस का विवेचन इस प्रकार है ।
- सर्वजनिक अवस्था – इस अवस्था में परीक्षित क्षण प्राप्त करने वाला अध्यापक ज्ञान अर्जित करता है । अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस अवस्था में अध्यापक को कौशल का अभ्यास करने की शिक्षा दी जाती है । इस प्रथम अवस्था में छात्राअध्यापक इस कौशल का प्रदर्शन भी करता है । अन्य अध्यापक इस कौशल को सुनते हुए देखते हैं और बाद में कौशल पर वाद विवाद भी होता है ।
- कौशल के अर्जन की अवस्था – दूसरी अवस्था में कौशल के अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है जिसे अध्यापक स्वयं करता है । तदर्थ वह समूह पाठ बनता है, उसे पढ़ा था है और उसके द्वारा दिए गए शिक्षण का मूल्यांकन होता । यदि इसे टेप रिकॉर्डर से सुनकर स्वयं अपनी त्रुटियों को जान जाता है और वह अपने शिक्षण में आवश्यक सुधार करता है । फल स्वरूप वह छात्राअध्यापक पुनः पाठ योजना तैयार करके शिक्षण करता है ।
- स्थानांतरण अवस्था – तीसरी और अंतिम अवस्था में छात्र अध्यापक कक्षा में जाकर उस कौशल का प्रदर्शन करता है । सूक्ष्म शिक्षण प्रीतम स्थिति में किया जाता है । आता है इससे पूर्व की अवस्था में छात्र अध्यापक के 5 से 6 तक सहपाठी भी होते हैं ।
निष्कर्ष : आशा है दोस्तों आपको यह लेख पसंद आया होगा सूक्ष्म शिक्षण माइक्रो टीचिंग आपको यह पता चल गया होगा कि इस के जन्मदाता डीडी .डब्ल्यू – एलान एलन है सूक्ष्म शिक्षण चक्र का पहला पद योजना बनाना होता है । हमने इस लेख के माध्यम से माइक्रो टीचिंग की परिभाषाएं जानी तथा सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं देखी, तथा उपयोगिता ओं के बारे में समझा आदि है धन्यवाद!
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