वैयक्तिक विभिन्नताएँ Individual Differences CTET Notes in Hindi

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वैयक्तिक विभिन्नताएँ (Individual Differences)

वैयक्तिक विभिन्नता (Individuals difference): कई बार हम समाज में दो व्यक्तियों को बिल्कुल एक जैसा पाते है लेकिन वे सामान्य रूप से ही एक जैसे दिखते है, वरना उनमें स्वभाव, बुद्धि, शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास की दृष्टि से पर्याप्त भिन्नता होती है। जुड़वा बच्चे देखने में तो बिल्कुल एक जैसे लगते है। लेकिन उनमें कई आधार पर अन्तर होता है। इसे ही वैयक्तिक विभिन्नता कहा जाता है। इस प्रकार की यह विभिनता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी पाई जाती है।

बुद्धि, रूप, रोग, आकार आदि कई प्रकार की विभिन्न ता हमें देखने को मिलती है। जब हम शिक्षा के प्राचीन स्वरूप पर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि जब बच्चे को बुद्धि और आयु के अनुसार ही उन्हें शिक्षा दी जाती थी। लेकिन वर्तमान युग में शिक्षा व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर दी जाने लगी है। इस प्रकार व्यक्तिगत विभिन्नता का महत्व वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बढ़ता जा रहा है।

व्यक्तिगत विभिन्नता के संमत्यय का सर्वप्रथम प्रयोग एक फ्रांसीसी मनोविज्ञान एक गाँल्टन ने किया था।

व्यक्तिगत विभिन्नता की परिभाषा व की अगर बात करें तो वह विभिन्न प्रकार से है:

हैडलर के शब्दों में : ‘ रूप, रंग, गति, कार्य, ज्ञान, बुद्धि, अभिरूचि आदि लक्षणो में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते है।”

स्किनर के अनुसार: ” व्यक्तिगत विभिन्नता उसे हमारा तात्पर्य व्यक्ति के उन सभी पहलुओं से है जिसका मानव व मूल्यांकन किया जा सकता है।”

 

वैयक्तिक विभिन्नताएँ (Individual Differences)

 

हम देखते हैं कि वर्तमान समय की शिक्षा व्यवस्था में मनोवैज्ञानिक व्यक्तिगत विविधताओं के सिद्धांत को ज्यादा महत्व देने लगे हैं। क्योंकि विकास प्रक्रिया को विभिन्न आयु वर्गों में बांटा गया है। और हर आयु वर्ग को अलग-अलग विशेषताएं होती है। जिनके कारण हम आयु वर्ग के व्यवहारों में अंतर होता है। इन अंतरों कि हम अनदेखी नहीं कर सकते हैं। जुड़वा बच्चों में भी व्यक्तिगत विभिनता है देखने को मिलती है। अतः हम देखते हैं कि सभी व्यक्तियों की वृद्धि और विकास उनकी अपनी स्वाभाविक गति से ही होता है। किसी व्यक्ति में कुछ विशेषताएं या व्यवहार से ग्रसित हो जाते हैं। तथा कुछ व्यक्तियों में वही व्यवहार देर से विकसित होते हैं। इस प्रकार उनमें पर्याप्त व्यक्तिगत विभिन्नता है देखने को मिलती है। सभी बालक वृद्धि और विकास के संदर्भ में समानता नहीं रखते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कई आधारों पर मनुष्य में व्यक्तिगत विभिन्नता आएं पाई जाती है। जिसका वर्णन विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है।

  1. शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिनता है: हम सभी अपने आसपास देखते हैं कि कुछ व्यक्ति के काले तो कुछ गोरे कुछ लंबे तो कुछ छोटे और कुछ मोटे तो कुछ पतले होते हैं। इसके अलावा भारत रंग शरीर, ढांचा और कुछ शारीरिक परिपक्वता के आधार पर अलग-अलग होते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि बालकों में वह शरीर एक व्यक्ति व्यक्ति की विभिन्न ता है पाई जाती है। इस प्रकार का विभाजन बालकों में बुद्धि लब्धि के आधार पर होता है। अर्थात हर कक्षा में लगभग 69% बालक औसत के आसपास होते हैं। और 60% बालक विभिन्न बुद्धि और 15℅ बालक उच्च बुद्धि के होते हैं। इसलिए अध्यापकों का दायित्व होता है। कि वह बालकों को कार्य संपादित करने के लिए शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें। यदि वह शारीरिक विभिनता बालकों में अधिक होती है। तो वह उन्हें उचित निर्देशन दे।
  2. योग्यताओं के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएं: विशिष्ट योगदान के आधार पर हम देखते हैं कि कुछ बालक इतिहास में तो कुछ भूगोल में कुछ कला में तो कुछ विज्ञान में अधिक योग्य या होशियार होते हैं। लेकिन वह अवश्य है कि सभी में कुछ ना कुछ योग्यता आवश्यक होता है। और सभी में विशिष्ट योग्यता हो ऐसा अनिवार्य नहीं होता है। कुछ डॉक्टर उत्तर के होते हैं। तो कुछ नहीं होते हैं। कुछ खिलाड़ी उच्च तर के होते हैं। अर्थात सभी खिलाड़ी एक करके नहीं होते हैं। व्यक्तियों की विशिष्ट योगदान का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है।
  3. लिंग के आधार पर वैयक्तिक के विभिनता: लिंग के आधार पर वह अवश्य कहा जाता है। कि जहां एक और स्त्रियां कोमल प्रवृति की होती है। वही पुरुष उनकी अपेक्षा कम कोमल प्रवृति के होते है। उनमें कुध अधिक कठोरता पायी जाती है। बालक व बालिकाओ मे सीखने के स्तर पर और क्षमता में अधिक अन्तर नहीं होता हैै। जो परीक्षण अभी तक लिंग को विभिन्नता के आधार पर किए गए उनसे कुध विश्वास के परिणाम नहीं निकाले गए है। अतः इस आधार पर पूर्ण विकास से कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि औसत अंकों में लिंगों के आधार पर ज्यादा अंतर नहीं पाया जाता है। और पाँली महोदय तो यहां तक कहते हैं की बालिकाओं को शिक्षा बालकों से 6 महीने बाद शुरू करनी चाहिए।

यह भी माना जाता है की बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का भाषा पर अधिकार ज्यादा होता है। और शारीरिक क्रिया भी बालिकाएं बालको से पहले करने लगती है जैसे – चलना, सीखना, लिखना, बोलना यह सभी क्रियाए आदि। इन्हीं कारणों से बालिकाएं बालको से श्रेष्ठ होती है। वह बालको से अच्छी भाषा का प्रयोग करती है। गणित विज्ञान आदि विषयों में भी वह उनसे अधिक उच्च स्तर की होती है।

4)समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिनता: सामाजिक विकास के स्तर पर व्यक्तियों में काफी अंतर या विभिनता ए पाई जाती है। यह विभिनता है बचपन से ही देखने लग जाती है। जैसे कुछ बच्चे अन्य व्यक्तियों को तुरंत अपना बना लेते हैं और कुछ बालक अन्य व्यक्तियों से बात करने से भी कतराते हैं। कुछ परिवारों के बच्चे ना केवल शारीरिक रूप से ही बल्कि ज्ञान ऊपर जन्म में भी श्रेष्ठ होते हैं और जिन परिवारों का व्यवसाय कुछ होता है उन परिवारों के बच्चे भी उच्च स्तर के होते हैं। यहां तक कि उनकी बुद्धि लब्धि 10 – 16 वर्ष के बीच में ही 115 – 118 तक होती है। जबकि जिन बच्चों के माता-पिता मजदूरी करते हैं उनकी बुद्धि लब्धि भी 95 – 100 के मध्य पाई जाती है। यह भी देखा गया है कि जिन परिवारों मैं अच्छी भाषा का प्रयोग नहीं होता है। वहां के बालक निम्न स्तर के पाए जाते हैं।

सभी ज्ञात माता विकास के आधार पर व्यक्तिक विभिनता: संवेगों के आधार पर भी बालकों में अंतर पाए जाते हैं। कुछ बालक अधिक दुखी हो जाते हैं तो कुछ नहीं होते हैं। कक्षा में जब अध्यापक किसी बच्चे को गलत दिशा में जाने से रोकने के लिए उन्हें सबके सामने डांटते हैं तो कुछ बालक उससे अपने आप को अपमानित समझकर जीवन की सही दिशा में चले जाते हैं ये वही बच्चे होते हैं। चीन का सर्वे की आत्मा का विकास हुआ होता है और जिन बालकों के ऊपर अध्यापक के कहने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता उनका समय के आत्मक विकास बाधित हुआ होता है इस प्रकार कह सकते हैं कि सभी को के आधार पर व्यक्तित्व भिन्नता ए भी बालकों में और मनुष्य में पाई जाती है।

6)व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएं: सबसे पहले व्यक्तित्व क्या है? इस विषय में मनोवैज्ञानिकों के विचार भिन्न-भिन्न है। शिक्षा मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। और सही मायने में वह वार की व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होता है। जो व्यक्ति जैसा व्यवहार प्रकट करेगा वैसा ही उसको व्यक्तित्व प्रकट होगा। प्रत्येक समाज और स्कूल बच्चों के व्यवहार और उसके व्यक्तित्व में रुचि लेता है। लेकिन हम देखते हैं कि व्यक्तित्व के आधार पर सभी ने व्यक्तिगत विभिन्नता आएं पाई जाती है। बालक जिन अध्यापकों या व्यक्तियों के व्यवहार का अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को उत्तर का मानते हैं और वही अध्यापक अच्छा माना जाता है जिसके व्यवहार का अनुसरण बच्चे करते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान में व्यक्तिगत विभिन्नता का विषय शिक्षा मनोविज्ञान का एक आवश्यक अंग बनता जा रहा है और यदि बालकों का सर्वांगीण विकास अध्यापक करना चाहता है तो उन्हें व्यक्तियों या बालकों को व्यक्ति के विभिन्न तत्वों का ज्ञान आवश्यक होना चाहिए और उपयुक्त व्यक्ति के विभिन्न गांवों के अलावा भी कई विभिन्न अदाएं बालकों में पाई जाती है जैसे गतिशील योग्यता के आधार पर व्यक्तिगत विभिन्नता और आयु व बुद्धि के आधार पर व्यक्तिगत विभिन्नता आदि।

व्यक्तित्व भिन्नता के कारण व्यक्तिगत विभिन्नता आएं जो बालकों में पाई जाती है लेकिन इन विभिन्न गांवों के पाए जाने के कई कारण भी होते हैं जैसे:

  1. वंशानुक्रम
  2. वातावरण
  3. परिपक्वता
  4. जाति, देश, प्रजाति आदि
  1. वंशानुक्रम (Heredity): हम यह पढ़ चुके है कि गर्भाधान कं समय विशेषताओं का हस्तांतरण पैलको द्वारा होता है। अब अगर इन विशेषतोओं का पालन-पोषण या विकास सही तरीके से नहीं होता है।तो बालक का विकास बाधित हो जाता है। और बच्चे के मता – पिता का सामाजिक, आर्थिक स्तर पर निर्भर करता है कि बालक का विकास कितना हुआ है। वंशानुक्रम के द्वारा यह निश्चित होता है। कि व्यक्तिक विभिनता कितनी है? या नहीं है? कई अध्ययनों जैसे- परिवारों का अध्ययन, जुड़वा बच्चों का अध्ययन, रक्त संबंधों का अध्ययन, अलग-अलग श्रेणियों के आधार पर किए गए अध्ययनों के आधार पर यह कहा जाता है। किवैयक्तिक विभिन्नताओं मे पाए जाने में वंशानुक्रम की अहम भूमिका है। गोंल्टन, डाडेल आदि के द्वारा किए गए अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला कि बुद्धि का हस्तातरण एक पीढ़ी सें दूसरी पीढ़ी मे होता है और यह हस्तांतरण उन्हीं विशेषताओं का होता है। जो प्रथम पीढ़ी में पाई जाती है जैसे-जैसे खून के सम्बंधो की डिग्री बढ़ती है। वैसे- वैसे उनमें समानताएं बढ़ती  जाती हैै। और असमानताएँ कम होती चली जाती है।
  2. वातावरण (Environment): केवल वंशानुक्रम के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएं नही पायी जाती है। बल्कि वातावरण भी एक मुख्य कारण है जिसके कारण व्यक्ति की विभिन्न अदाएं पाई जाती है। जब बालक का जन्म होता है और उसके माता-पिता से पैतृक विशेषताएं उन्हें मिलती है। तब उसके बाद आने की प्रक्रिया उसके वातावरण द्वारा प्रभावित की जाती है वह कहा जाता है कि अगर एक बालक को अगर अच्छा मातरम मिले तो वह अच्छा बन सकता है और यदि उसे जंगली वातावरण मिले तो वह जंगली होगी बन जाता है बालक के विकास की दिशा और व्यक्ति की विभिनता को निश्चित करने में वातावरण सक्रिय होता है और वातावरण से बालक के विकास की गुणवत्ता भी निर्धारित की जा सकती है जैसे बालक का अच्छा या बुरा होना चरित्रवान होना और देशभक्त या देशद्रोही होना उसके वातावरण पर निर्भर करता है।
  3. परिपक्वता (Maturation) : परिपक्वता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शारीरिक संरचना की वृद्धि और विकास के परिणाम स्वरूप व्यवहार में सुधार होता है और परिपक्वता एक मुख्य कारण होता है जो व्यक्ति की विभिनता को निश्चित करता है जिन बाल को या व्यक्तियों का विकास सही से नहीं होता,  वे परिपक्व होते है। और जिन बच्चों का विकास बाधित हो जाता है। यह परिपक्व आप नहीं हो पाते उन्हें समाज में कई प्रकार से अधूरा माना जाता है और वे समाज के साथ चलने में असमर्थ महसूस करते हैं। यही कारण है कि परिपक्वता को व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए एक कारक माना जाता है।
  4. जाति देश प्रजाति: वैयक्तिक विभिन्नता ए जाती देश, प्रजाति के आधार पर बदल जाया करती है जो विशेषताएं हमारे देश की जातियो या हमारे देश के व्यक्तियों में पायी जाती है। वे विशेषताए अमेरिका चीन या अन्य देशों के लोगों में नहीं होती अर्थात जर्मनी के लोगों की सोच विचार आदि कई बातें हम लोगों से अलग होती है इसलिए इन आधारों पर भी व्यक्ति की विभिन्न अदाएं अलग-अलग होती है।

 

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