अभिप्रेरणा Motivation का क्या अर्थ परिभाषाएं

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अभिप्रेरणा Motivation का क्या अर्थ है इसकी कुछ परिभाषाएं :

हमारे शरीर में हृदय को जो स्थान प्राप्त है वही स्थान सीखने में अभिप्रेरणा को प्राप्त है अर्थात सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा को हृदय का स्थान दिया गया है। अभिप्रेरणा व्यक्ति को क्रियाशील बनाने वाली शक्ति है। आज जीवन के हर क्षेत्र में अभिप्रेरणा का महत्व बढ़ गया है। अभिप्रेरणा की कमी के कारण प्रत्येक क्षेत्र में असंतोष की भावना प्रबल होती जा रही है। बालकों को अभिप्रेरणा देना अध्यापक के लिए एक ऐसी ही समस्या है, जिसकी और ध्यान देना जरूरी हो गया है। सीखने के क्षेत्र में अभिप्रेरणा की महत्वपूर्ण भूमिका है।

अभिप्रेरणा की परिभाषा

मैक्डूगल के मत से  “अभिप्रेरक प्रणाली में निहित वे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियां है जो उसे किसी विशेष ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरणा देती है”

वुडवर्थ के विचारों के अनुसार: ” अभिप्रेरणा प्राणी की वह अवस्था है जो उससे किन्हीं विशेष लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किसी विशेष प्रकार का व्यवहार करवाती है।”

 

जेम्स ड्रेवर का कहना है कि “अभिप्रेरणा एक भावात्मक क्रियात्मक कारक है जो चेतना और अचेतना के ओर होने वाले व्यक्ति के व्यवहार की दशा को निश्चित करने का कार्य करता है। “

श्री टी. पी. नन के अनुसार ” अभिप्रेरणा ऐसा प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेषकर कठिन कार्य में भी बालकों की रूचि पैदा हो सके तथा कठिर्नाइयों के होते हुए भी कार्य सफल होने तक इसे बनाये रखा जा सके।”

जे . पी गिल्फोर्ड के अनुसार: ” अभिप्रेरक एक विशेष आन्तरिक कारक अथवा स्थिति है जो किसी क्रिया को शुरू करने एवं जारी रखने की प्रवृत्ति रखती है।”

इन परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा के द्वारा हम किसी भी मुश्किल काम को सरल बनाकर बच्चों को काम कराने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अभिप्रेरणा का गुण पैदा करके हम शिक्षा के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

अभिप्रेरणा की विशेषताएं

  1. अभिप्रेरक व्यवहार चयनात्मक होता है।
  2.  अभिप्रेरित के व्यवहार में निरंतरता पाई जाती है।
  3. अभिप्रेरित व्यवहार अधिक प्रबल होता है।
  4. अभिप्रेरणा में व्यवहार लक्ष्य निर्देशित होता है।
  5. आभिप्रेरित व्यवहार अर्जित तथा जागृत होता है।

अभिप्रेरणा के तत्व

अभिप्रेरणा में तीन तत्व शामिल है- 

  1. अभिप्रेरणा पूर्वानुमान उद्देश्य द्वारा वर्णित होती है।
  2. अभिप्रेरणा व्यक्ति के अंदर शक्ति परिवर्तन से आरंभ होती है।
  3. अभिप्रेरणा भावनात्मक जागृति द्वारा वर्णित होती है।

अभिप्रेरणा के दो रूप आंतरिक तथा बाह्म 

आंतरिक अभिप्रेरणा में रूचि किए जाने वाले कार्य के अंदर निहित है। जीवन की असल क्रियाएं प्रोजेक्ट विधि आदि को शिक्षण में शामिल कर देने से आंतरिक सुख मिलता है और विषय में लाभदायक और उपयोगी बनाने से बालक शिक्षण क्रिया में खुशी का एहसास करता है।

अभिप्रेरणा के अभाव में सीखने और सिखाने का काम नहीं होता। इस कारण अध्याप को बालकों की रूचि, क्षमता योग्यता और कुछ ऐसी तरीके जिनसे सीखने में मदद मिलती है, का ज्ञान होना जरूरी है।

निष्कर्ष

कार्य करने के पश्चात भी हम उस कार्य को करने में लगे रहते हैं तो उसमें अभिप्रेरणा का हाथ होता है जब अध्यापक बच्चों में कुछ सीखने की रुचि जगा सकता है तो मानो अध्यापक ने आधा मैदान जीत लिया है। जब बच्चा शिक्षण में रुचि दिखा दिखाएगा तो अध्यापक के सारे प्रयास सफल हो जाते हैं। इसलिए बच्चे में अभिप्रेरणा पैदा करना सबसे आवश्यक हो जाता है।

 

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