स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
परिचय (Introduction) –
स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत
उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं
बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।
सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ के मूल हैं।
विशिष्ट कारक – जो विशिष्ट कार्यो में सहायता करते हैँ।
G Factor मानसिक क्रियाओं का मूल हैं। अर्थात जिस व्यक्ति में G Factor उपस्थित है वही अपनी मानसिक क्रियाओं को कर सकता है।
और इसके अतिरिक्त विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट कारक उपस्थित होते हैं
सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है
- स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
- यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
- प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
- G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक अर्थत जिसके पास G कारक है वो मानसिक कार्य कर सकता है परन्तु इस G कारक के अतिरिक्त हर व्यक्ति के पास एक विशिष्ट कारक या विभिन्न प्रकार के विशिष्ट कारक हो सकते है। प्रत्येक मानसिक कार्य को करने में कुछ विशिष्टता( Specificity ) की आवश्यकता होती है। क्योकि, प्रत्येक मानसिक कार्य एक दुसरे से अलग अलग होती हैं। स्पीयरमेन ने इसे विशिष्ट कारक ( S – कारक ) की संज्ञा दी हैं।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक की विशेषताएं :
- S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
- विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।
3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।
इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
- S – कारक का स्थानान्तरण एक विषय से दूसरे विषय में नही हो सकता G – कारक द्वारा हम के विषय से दुसरे विषय में जा सकते है, परन्तु जरुरी नही है जिसे गाना गाना अता हो वह पेन्टीग भी अच्छा करता हो।
स्पीयरमेन ने G – कारक और S – कारक के बीच में संबंध बताने के लिए : सहसंबंध विधि द्वारा समर्थन लिया ( Evidence by correlation method )
इस में स्पीयरमेन ने correlation method से Evidence दिए :
स्पीयरमेन ने G व S कारकों के बीच सम्बन्ध बताया। इन्होने भिन्न भिन्न तरह की मानासिक क्षमता मापने वाले टेस्ट किए, जैसे शाब्दिक बोध पर परिक्षण, स्मृति परिक्षण, विवेक परिक्षण आदि को व्यकितयों के एक बड़े समूह पर क्रियान्वन किया, और इन परीक्षणों के बीच सहसंबध ज्ञात किया।
जिसका परिणाम यह निकला :
- सहसंबंध गुणांक ( correlation coefficient) धनात्मक एवं ऊंचा था, जो 0.62 से 0.82 प्राप्त हुआ। इससे सिद्ध होता है की, प्रत्येक व्यक्ति में ऐसी मानसिक उर्जा है, जो अलग – अलग परीक्षण में मदद कर रही है, स्पीयरमेन ने ही इसे G -कारक कहा ।
- सहसंबंध गुणांक में S -कारक के भी प्रमाण हैं। जैसे सहसंबध गुणांक धनात्मक तो है, परन्त पूर्ण अर्थात 1.00 नहीं था, जो इस बात की सूचना देता है कि, प्रत्येक परीक्षण द्वारा मापी गयी मानसिक क्षमता में कुध विशिष्टता की ज़रुरत होती है। यदि मानासिक क्षमता में केवल G -कारक ही होता तो सहसंबंध 1.00 ही होता। अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक बौद्धिक कार्यो में G – कारक तथा S – कारक दोनों सम्मिलित होते हैं। G – कारक का महत्व अधिक है, इसके कम होने से व्यक्ति को बौद्धिक कार्य करने में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हेती। इसलिए स्पीयरमेन के बुद्धि सिद्धांत को G – सिद्धांत भी कहते हैं।
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