समाजीकरण में परिवार का योगदान –
समाजीकरण का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके फलस्वरूप नवजात शिशु आगे चलकर समाज का एक उत्तरदायी सदस्य बनता है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण बात बालक का पालन-पोषण कैसे किया जाए कि वह समाज का एक योग्य सदस्य कहलाएं । समाजीकरण उन सभी प्रयासों के सामूहिक रूप को बोला जाता हैं जिसका उद्देश्य यह होता है कि व्यक्ति अपने समाज और संस्कृति में जो मान्यता है उनका अनुकारण करते हुए एक सफल नगारीक बने । अतः कह सकते है कि समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को समाज के द्वारा प्रदान की गई सामाजिक सांस्कृतियों को ग्रहण करने से है साथ ही समाज के कर्तव्य का पालन करते हुए समाज का एक क्रियाशील सदस्य बनने से है। सरल शब्दों में बोला जा सकता है जिस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति के समाजिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है, उसे समाजीकरण कहते हैं।
परिभाषा : जॉनसन के अनुसार : ” समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।”( “Socialization is learning that enables the learners to perform social role.”)
समाजीकरण की प्रक्रिया वैसे तो बहुत जटिल प्रक्रिया है, जो बालक के विकास को प्रभावित करती हैं जिनका वर्णन निम्न प्रकार से है –
परिवार का योग्यदान समाजीकरण की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है, यही से बालक सर्वप्रथम समाजीकरण आरंभ करता है। इसी कारण से परिवार बालक का सर्व प्रथम पाठशाला कहा जाता है। परिवार ही वो जगह है जहा से बालक आदर्श नगररिकता का पाठ सिखता है। बालक के समजीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं –
- माँ की भूमिका – बालक का परिवार में सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध माँ से होता है। माँ उसे दूध पिलाती है और उसकी देख भाल करती है और यदि माँ बालक की देखभाल अच्छे से नही करती तो उसका प्रभाव यह होता है कि बालक का समाजिकरण उचित प्रकार से नही होता।
- अधिक लाड़ – प्यार – देखा गया है परिवार द्वारा आवश्यकता से अधिक प्यार करने से और उन्हें किसी भी प्रकार का कार्य नही करने देते जिस करण से उन का समाजीकरण रूक जाता है या ठीक ढंग से नहीं हो पाता जिस के परिणाम स्वरूप बालक बिगड़ जाता है।
- माता पिता का आपसी सम्बन्ध – बालक के समाजिकरण में माता पिता का विशेष महत्व होता है। जैसे कि देखा गया है जिन परिवार में माता पिता का आपसी सम्बन्ध अच्छे होते हैं उन परिवार का समाजीकरण उचित ढंग से होता है इस के विपरीत जिन परिवार में माता -पिता आपस में झगड़ते हैं इसके कारण बच्चों पर इस का बुरा प्रभाव पड़ता हैं और इस से उनका समाजीकरण विकृत हो जाता है, क्योकि आपसी लड़ई झगड़ा के करण माता – पिता बच्चों पर अधिक ध्यान नही दे पाते।
- माता पिता के बच्चे के साथ सम्बन्ध – माता – पिता जब बच्चों को उचित स्नेह देते हैं तो उनमें अच्छे सामाजिक गुण पैदा हो जाते हैं। और यदि बच्चों को माता – पिता का ऊचित प्यार और सुरक्षा नही मिलता है तो उनका समाजीक विकास अच्छे ढंग से नही होता। वे पूर्ण रूप से मामा-पिता पर निर्भर हो जाते है। इसके विपरीत अगर बच्चों को कम स्नेह या प्यार मिलता है, उनमें बदला लेने की भावना विकसित हो जाती है। इस करण से बालक कई बार बाल – अपराधी भी बन जाते हैँ।
- बच्चों का अन्य सम्बन्धियों के साथ सम्बन्ध – बच्चे के परिवार के सम्बन्धियों का भी बच्चे के उपर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे बच्चे का दादा दादी, चाचा – चाची मौसा – मोसी तभा अन्य परिवार सगे-संबंधियों के साथ सम्बन्ध कैसा हैं? ये भी बालक के समजीकरण में मुख्य भूमिका निभाते है।
- परिवार की आर्थिक स्थिति – यह भी देखा गया अगर पारिवारिक आर्थिक स्थिति अगर ठीक ना हो तो ये भी बालक के समाजीकरण मे बंधा पहुंचती हैं, क्योंकि बालक के पालन पोषन मे बच्चों को वो आर्थिक सुख-सुविधाएँ नहीं मिल पातीं जो एक अच्छे आर्थिक परिवार के बच्चों को मिलती है। अतः इन से बालक में सहनशीलता, परिश्रम करने वाले गुण विकसित होते है।
- परिवार की बनावट – परिवार दो प्रकार के होते हैं – (i) संयुकत परिवार, (¡¡) असंयुक्त परिवार।
संयुक्त परिवार तथा असंयुक्त परिवार ये दोनो ही समाजीकरण को अपने अपने ढंग से प्रभावित करते हैं। संयुक्त परिवार के बालक प्रायः सहनशील, सहानुभूतिपूर्ण,कम स्वार्थी होते हैं, दुसरी तरफ अंसयुक्त परिवार या छोटे परिवार वाले स्वार्थी होते हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि बालक के समाजीकरण में बहुत से संस्थाएँ योगदान देती हैं फिर भी परिवार का योगदान सबसे ऊपर है क्योंकि समाजीकरण की पहली शिक्षा बच्चा परिवार के द्वारा ही सीखता है। परिवार के बाद बच्चा स्कूल द्वारा समाजीकरण करना सीखता है, परन्तु समजीकरण में शिक्षा में परिवार की महांत्वता को नकरा नहीं जा सकता।
आगे पढ़ें – समाजीकरण की प्रक्रिया
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